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________________ माहात्म्य ब्रह्मचर्य का (खं-1-3) ४७ ब्रह्मचर्यव्रत का हाँ, लेकिन मुझे को पालन करते हैं, इसके बजाय आपका दिया हुआ ब्रह्मचर्यव्रत पालन करे तो बहुत फर्क पड़ेगा न? दादाश्री : वह ब्रह्मचर्यव्रत कहलाता ही नहीं है न! जहाँ मन से ब्रह्मचर्य नहीं है, वह ब्रह्मचर्य नहीं कहलाता और बिना ज्ञान के किस ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे? खुद को ज्ञान नहीं है। यह तो 'मैं कौन हूँ' इसी का ठिकाना नहीं है न? । प्रश्नकर्ता : मेडिटेशनवाले में ऐसा कहते हैं कि आप ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करो। दादाश्री : हाँ, लेकिन इतना कुछ आसान नहीं है। उसे कहना, 'तू ही पालन कर न, मुझे क्यों कह रहा है?' यों तो सभी से कहेंगे लेकिन खुद तो पोल मारते हैं। ब्रह्मचर्य पालन तो कौन कर सकता है? जो ज्ञानीपुरुष की छत्रछाया में हों, वे सभी ब्रह्मचर्य का पालन कर सकते हैं। अतः यदि ब्रह्मचर्य का यों ही पालन करने गया और यदि सँभालना नहीं आया तो इंसान मैड हो जाएगा। हमारी यह खोज बहुत सुंदर है, पूरा विज्ञान बहुत सुंदर है और पूरा वर्ल्ड एक्सेप्ट करे, ऐसा है। इन साइन्टिस्ट वगैरह को भी यह एक्सेप्ट करना पड़ेगा। ब्रह्मचर्य तो कैसा होना चाहिए? यह 'अक्रम विज्ञान' है। यह तो बहुत ग़ज़ब का विज्ञान है। जगत् जब इसे समझेगा तब नाच उठेगा। आपको स्त्री पर वैराग आ गया या नहीं? कितनी देर में? अभी पंद्रह मिनिट में ही? तो फिर ज्ञानियों की चाबियों से कैसा वैराग आ जाता है! और यों पहरा लगाएँ तो कब अंत आएगा? यहाँ से पहरा लगाएँ तो उस ओर से घुस जाएगा। हम किसी पर भी पहरा लगाते ही नहीं न! हम कहाँ पहरा लगाएँ? जिसे इस गंदगी में डूबना ही है, उसे फिर हम छोड़ देते हैं! यहाँ पर ये लड़के जो ब्रह्मचर्य पालन करते हैं, वह तो सहज
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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