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________________ ३२ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) जैसा प्रोजेक्ट किया होगा, वैसा यह फल मिला है। उसके कड़वे फल मिलते हैं। उसे भुगतने नर्कगति में जाना पड़ता है। ____ उसके हेतु पर आधारित है। अगर विषय विकार होगा तो कितना ही योग करने पर भी वह फलदायी नहीं होगा। प्रश्नकर्ता : विषय जो होता है, विकार अंदर भरा होता है, छोटे से बड़े जीव तक में, हर एक का विषय पुत्रदान के लिए ही होता है न? दादाश्री : पुत्र या पुत्री कुछ भी हो, लेकिन वह संसार बढ़ाने के लिए ही है न! वंश बढ़ाने के लिए ही है न! प्रश्नकर्ता : विषय करता है वह इच्छा से नहीं, सिर्फ संतान प्राप्ति के लिए ही विषय होना चाहिए, वह ठीक है? दादाश्री : ऐसा है न, पुत्र के हेतु के लिए जो अब्रह्मचर्य करता है, उसका और ब्रह्मचर्य का कोई लेना-देना नहीं है। ब्रह्मचर्य तो बहुत ऊँची चीज़ है। प्रजा की उत्पत्ति के लिए अब्रह्मचर्य का इस्तेमाल करने की कोई ज़रूरत नहीं है। प्रजा की उत्पत्ति के लिए तो ये सभी जानवर भी करते ही रहते हैं न! उसमें नया क्या है? उससे तो मौज-मस्ती के लिए इस्तेमाल करे वह अच्छा। मौज-मस्ती के लिए हो रहा है और संतानोत्पत्ति के लिए करने से तो ऐसा लगता है कि मुझे यह फल मिला है। यह तो निम्नतम कक्षा की बात है। जैसा मेरी दृष्टि में हैं, वह आपको बता रहा हूँ। बाद में आपको जो ठीक लगे, वैसा समझना। प्रश्नकर्ता : उसमें दोष है क्या? दादाश्री : दोष तो है ही न! वह प्रजा उत्पत्ति के लिए नहीं होना चाहिए। उससे अच्छा तो आप अगर शौक के लिए कर रहे हो तो आखिर में उसका धक्का लगेगा, तब वापस पलटेगा
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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