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________________ ६ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) शादी करने के परिणाम तो देखो अब, तुझे संसार में क्या-क्या चाहिए? वह बता न। प्रश्नकर्ता : मुझे तो शादी ही नहीं करनी है। दादाश्री : यह देह ही निरी उपाधि (बाहर से आनेवाला दु:ख) है न! जब पेट में दर्द होता है, तब इस देह पर कैसा होता है? तो दूसरे की दुकान तक व्यापार बढ़ाएँगे, तो क्या होगा? कितने दु:ख देती है? और फिर दो-चार बच्चे हों तो। सिर्फ बीवी हो तो ठीक है, वह सीधी रहेगी लेकिन ये तो चार बच्चे! तो क्या होगा? बेहद परेशानी! निरी 'फाइलें' ही बढ़ जाती हैं। इसलिए भगवान ने ऐसा कहा है कि औपचारिक मत करना। अनुपचार मतलब आपने जिसका उपचार तक नहीं किया, वैसी है यह देह। इसका तो कोई चारा ही नहीं है लेकिन वह तो उपचार करता है। शादी करता है, व्यापार करता है, वह मत करना, जबकि और इसे अब उपचार करने की इच्छा नहीं है, इसलिए कह रहा है कि शादी ही नहीं करनी है। योनी में से जन्म लेता है। योनी में तो इतने भयंकर दुःखों में रहना पड़ता है और बड़ी उम्र के होने पर वापस योनी पर ही जाता है। इस जगत् का व्यवहार ही ऐसा है। किसी ने सही बात सिखाई ही नहीं है न! माँ-बाप भी कहते हैं कि शादी कर लो अब, और माँ-बाप का फ़र्ज़ भी तो है न? लेकिन कोई सही सलाह नहीं देता कि इसमें ऐसा दुःख है। वे तो कहेंगे, 'शादी करवा दो अब। ताकि उसके वहाँ बच्चा हो तो मैं दादा बन जाऊँ।' बस, उन्हें इतनी ही उत्कंठा होती है। 'अरे, लेकिन दादा बनने के लिए मुझे क्यों इस कुएँ में धकेल रहे हो?' पिता जी को दादा बनना होता है, इसलिए हमें कुएँ में धकेल देते हैं। शादी में तो कितने ही ऐक्सिडेन्ट होते हैं, फिर भी कितनी ही शादियाँ होती हैं न? यह तो, शादी के कुएँ में गिरना पड़ता है। कुछ
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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