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________________ दादा देते पुष्टि, आप्तपुत्रियों को (खं-2-१८) ४२३ सुख खुद के पास है, लोग ऐसा समझे ही नहीं हैं न? और सुख को ढूँढने बाहर जाते हैं। प्रश्नकर्ता : लेकिन सुख को किसी न किसी का आधार है ही, मन का, वचन का..... दादाश्री : परावलंबी सुख को सुख कहेंगे ही कैसे? प्रश्नकर्ता : सिर्फ बहनों की शिविर करवाइए। दादाश्री : तब तो बहुत प्रभाव पड़ेगा। वे जब सच्चा ब्रह्मचर्य पालन करेंगी, तो वह लाइट अलग ही तरह की होगी। यह तो जन्म लिया और मर गए यहीं पर, जानवर की तरह, वह किस काम का? बहनों सुन रही हो न, मेरी बात कड़वी लगे फिर भी अंदर उतारना। भले ही कड़वी लगे, लेकिन अंत में मीठी निकलेगी। मीठी निकलेगी या नहीं? प्रश्नकर्ता : निकलेगी। दादाश्री : अभी तो कड़वी लगेगी। मैंने कहा है सिर्फ यही एक सेफ साइड है, बाकी सब फँसाव है। कल्याण करना है या कल्याण स्वरूप बनना है? प्रश्नकर्ता : ये दीक्षा लेनेवाली जो बहने हैं, उन्हें धर्म का ऐसा कुछ रहस्य समझाइए कि जिससे उनका कल्याण हो और समाज को और लोगों को भी फायदा हो। दादाश्री : कल्याण करने में एक ही चीज़ है कि जो खुद का कल्याण कर ले, वह बिना बोले दूसरों का कल्याण कर सकता है! अत: करना कितना है? 'ज्ञानीपुरुष' के पास खुद का कल्याण कर लेना है। फिर खुद कल्याण स्वरूप हुआ कि बिना बोले लोगों का कल्याण हो जाएगा और जो लोग बोलते रहते हैं, उससे कुछ नहीं होता। सिर्फ भाषण करने से, बोलते रहने से कुछ नहीं होता।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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