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________________ दादा देते पुष्टि, आप्तपुत्रियों को (खं - 2- १८) दादाश्री : जैसा खुद हो जाए, निश्चय भी वैसा ही हो जाता है। खुद कमज़ोर हो जाए, तो हो गया अनिश्चय। ४१९ प्रश्नकर्ता : लेकिन इस तरफ का निश्चय करने में इतनी देर लगती है जबकि शादी का निश्चय तुरंत ही हो जाता है। ऐसा क्यों ? दादाश्री : नहीं, यहाँ पर देर लगती ही नहीं। यहाँ पर, वह बिना देरीवाला ही है। प्रश्नकर्ता यहाँ पर भी बिना देरी का ही ? दादाश्री : हाँ, जैसा वह तुरंत, वैसा ही यह भी तुरंत । यहाँ पर अगर देर लगाकर किया हो तो उसका निश्चय बदलेगा ही नहीं न! कभी भी नहीं बदलेगा, मार डाले फिर भी नहीं बदलेगा। प्रश्नकर्ता : हम सभी को अगर ठीक से समझकर यह निश्चय स्ट्रोंग करना हो, तो समझ तो हम पूरी-पूरी लाए ही नहीं हैं न! तो फिर वह स्ट्रोंगनेस कैसे आएगी ? दादाश्री : तेरा ध्येय होगा तो सबकुछ आएगा। प्रश्नकर्ता : यानी जिसे स्ट्रोंग करना है, उसका होगा ही? दादाश्री : नहीं। ध्येय तय किया होगा न तो स्ट्रोंग रहेगा तो फिर हो जाएगा। यह ध्येय नहीं है, उसका ध्येय नहीं है कुछ भी। प्रश्नकर्ता : आपने दादा एक बार कहा था कि निश्चय मज़बूत करना हो तो निश्चय के विरुद्ध का एक भी विचार नहीं आना चाहिए। दादाश्री : हाँ। और अगर उस ध्येय को नुकसान पहुँचनेवाला कुछ भी आए तो उसे हटा देना चाहिए ।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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