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________________ ४१८ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) जूठन, गंदगी सारी। आँखों को अच्छा नहीं लगता, कान को अच्छा नहीं लगता, जीभ को अच्छा नहीं लगता। वह पढ़ती हो? प्रश्नकर्ता : पढ़ नहीं पाती खास। दादाश्री : उसे पढ़ने से तो पूरी प्रकृति अलग हो जाती है, वर्ना फिर शादी कर लेना अच्छा। तुझे तो चलेगा न? प्रश्नकर्ता : प्रकृति टेन्शनवाली है न, इसलिए ज्ञान का परिणाम जैसा आना चाहिए वैसा नहीं आता। दादाश्री : ज्ञान का परिणाम तो अगर सत्संग हो न, तभी आता है। वह तो सत्संग नहीं है, इसलिए। वह तो अपने यहाँ पर जब बन जाएगा सभी के साथ रहने से विचार भी नहीं आएगा, बल्कि आनंद होगा। वह मकान जब बनेगा वहाँ पर ब्रह्मचारीणियाँ रहेंगी, नहीं तो फिर शादी करवाने को कह देना। अच्छे सत्संग में आए तो वह टेन्शनवाली प्रकृति हमेशा नहीं रहेगी, वह तो सबकुछ बदल जाएगा। वह तो कुसंग में जाए तभी बाधक रहता है सब। उसमें भी अगर यह विषय पसंद ही नहीं हो तो छुटकारा होगा। फिर भी किसी पर दृष्टि आकृष्ट हो तो प्रतिक्रमण से खत्म हो जाएगा। लेकिन अगर अंदर से विषय पसंद हो तो शादी कर लेना अच्छा। प्रश्नकर्ता : खुद के हित का नहीं सोचती। दादाश्री : हित तो है ही नहीं न, भान ही नहीं है। मिठास में जो इंसान फँस जाए, उसका तो हित का ठिकाना ही नहीं रहता न! प्रश्नकर्ता : उस समय खुद ने जो निश्चय किया है, वह कहाँ चला जाता है?
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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