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________________ अंतिम जन्म में भी ब्रह्मचर्य तो आवश्यक (खं-2-१७) ३८३ हिंसक पशुओं ने जो मांसाहार किया हो, तो उन सब की उल्टी हो जाती है! उसी तरह ज्ञानीपुरुष का एक शब्द सुनते ही उल्टी हो जाए, वैसे व्यवहार की आवश्यकता है। यों सिर पर हाथ रखें न, या हाथ लगाएँ तो भी क्या से क्या कर दें, वह कहलाता है व्यवहार! व्यवहार यानी क्या कि कोई उनके हाथ-पैर आदि छू ले, तो भी काम हो जाए, और वह तो ज्ञानी की सिद्धि कहलाती यह तो अपना ज्ञान है इसलिए चल रहा है, वर्ना गाड़ी चले ही नहीं न! रुक ही जाए गाड़ी। यह ज्ञान एकदम जागृति देता है और पापों को भस्मीभूत कर देता है। निश्चय के साथ में वचनबल का पावर प्रश्नकर्ता : इन सभी युवकों को दादा ने जो ब्रह्मचर्य की शक्ति प्रदान की है तो भविष्य में उन्हें जब पिछले जन्म के संस्कारों की वजह से काम-विकार जागेंगे, तब वे लोग उन संयोगों में कैसे अडिग रह सकेंगे? उन्हें क्या करना होगा? यह सब समझाइए, सभी को लाभ होगा। दादाश्री : अपना यह 'ज्ञान' ऐसा है कि सर्व विकारों का नाश हो जाता है। हम जब व्रत की विधि करते हैं, तब हमारा वचनबल काम करता है। उसका निश्चय नहीं डिगना चाहिए। प्रश्नकर्ता : इनका जो निश्चयबल है, वह 'व्यवस्थित' के हाथ में है या उनके खुद के हाथ में है? दादाश्री : 'व्यवस्थित' नहीं देखना है। 'व्यवस्थित' उसी को कहते हैं कि तुम्हारा निश्चयबल और हमारा वचनबल, ये दोनों इकट्ठे हुए कि अपने आप 'व्यवस्थित' चेन्ज हो जाता है। सिर्फ ज्ञानी का वचनबल ही ऐसा है जो 'व्यवस्थित' को चेन्ज कर सकता है। संसार में जाने के लिए वह आड़ी दीवार जैसा है, एक बार आड़ी दीवार बना दी कि फिर संसार में जा ही नहीं सकेगा।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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