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________________ ३८२ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) है और उस बाड़ पर कितने तटस्थ रहे हैं, निरीक्षक जैसा काम करते हैं! बोलो अब, ऐसा कहीं हो सकता है? इस कलियुग में ऐसा हो रहा है तो इसके पीछे कोई नये ही प्रकार का सर्जन है, ऐसा तय ही है न? यह तो मेरी कल्पना में भी नहीं था कि इस काल में ऐसे ब्रह्मचारी तैयार होंगे? इन दादा में इतना अधिक त्याग बर्तता है कि सभी प्रकार के जीव यहाँ खिंचकर आएँगे। इन दादा का एक-एक अंग त्यागवाला है, एक-एक अंग पवित्र है, इसलिए फिर उसके हिसाब से सभी खिंचकर आ जाएँगे। यह आकर्षण किसका है? एक जैसों का। प्रश्नकर्ता : कैसे? दादाश्री : गुण मिलते हैं न, इसलिए! क्योंकि लोहचुंबक, पीतल को नहीं खींचता! यह तो दिमाग़ काम न करे, इतना सुंदर ब्रह्मचर्य पालन कर रहे हैं ये लोग। दादा का यह वचनबल इतना सुंदर है कि जो इतना सुंदर काम कर रहा है। हालांकि इन्हें बहुत मार्गदर्शन देना पड़ता है। अभी तो थोड़ा धमकाना भी पड़ता है। वस्तु इन्हें एक्ज़ेक्टनेस में आ जाती है, लेकिन अभी तो व्यवहार में कुछ समझते ही नहीं न! इसलिए अब इन्हें हम व्यवहार सिखाते रहते हैं। व्यवहार नहीं होगा तो कोई बाप भी नहीं सुनेगा। व्यवहार में पास नहीं होंगे तो, वह व्यवहार इन्हें उलझा देगा। किसी का कल्याण करना होगा, फिर भी नहीं हो पाएगा। खुद का तो कल्याण हो जाएगा, लेकिन अन्य किसी का कल्याण नहीं कर सकेंगे। इसमें तो, अगर व्यवहार होगा, तभी दूसरों का कल्याण कर सकेगा। इनकी क्या भावना है कि अब हमें जगत् कल्याण करना है इसके लिए उन्हें मुख्यतः व्यवहार की आवश्यकता पड़ेगी। व्यवहार तो कैसा होना चाहिए कि जब ज्ञानीपुरुष दहाड़ें, तो महात्मा में जो भी रोग हो न, वह दहाड़ के साथ ही निकल जाए। ऐसी कहावत है न, कि सिंह दहाड़े तब सियार और अन्य
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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