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________________ ३७४ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) है। बिल्कुल ही खोखली हकीकत नहीं है, लेकिन रिलेटिव में तो हकीकत है। जीभ को स्वाद आता है, वह तो रिलेटिव में हकीकत है। जबकि विषय तो किसी में है ही नहीं। कैसा मोह, कि शौक से शादी करते हैं यह स्त्री-पुरुष का जो विषय है न, उसमें दावे किए जाते हैं क्योंकि इस विषय में दोनों की मालिकी एक है और मत दोनों के अलग हैं। इसलिए यदि स्वतंत्र होना हो तो इस गुनहगारी में नहीं आना चाहिए और जिसके लिए यह गुनहगारी अनिवार्य है, उसे उसका निकाल करना पड़ेगा। प्रश्नकर्ता : गुनहगारी में नहीं आना पड़े उसके लिए क्या शादी नहीं करनी चाहिए? दादाश्री : शादी नहीं करनी चाहिए या करनी चाहिए, वह अपनी सत्ता की बात नहीं है। तुझे निश्चयभाव रखना चाहिए कि ऐसा नहीं हो तो उत्तम। जिस तरह गाड़ी में से गिरना चाहिए, क्या किसी की ऐसी इच्छा होती है? अपनी इच्छा कैसी होती है कि गिर न पड़ें तो अच्छा। फिर भी अगर गिर जाएँ तो क्या होगा? उसी तरह शादी के लिए गिर न पड़ें तो अच्छा। अपने भाव ऐसे रहने चाहिए। प्रश्नकर्ता : यानी शादी करना गाड़ी में से गिरने के बराबर दादाश्री : उसी तरह का है न, लेकिन वह मजबूरन ही होना चाहिए। प्रश्नकर्ता : फिर उसे नाटक रूप में लेना पड़ेगा? दादाश्री : और क्या? फिर चारा ही नहीं रहेगा न! प्रश्नकर्ता : शादी करने में इतना जोखिम है, वह सुख दाद
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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