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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
उतनी ही वाणी निकलती है। उसमें हमें कुछ लेनादेना नहीं है और इसमें हमें कुछ पड़ी भी नहीं है।
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हम तो ऐसा भी नहीं कह सकते कि, 'भाई, तू शादी मत करना।' ऐसा दबाव नहीं डाल सकते। हम इतना कहते हैं कि 'तू शादी कर ले।' क्योंकि वह क्या माल भरकर लाया है, उसे वह खुद जानता है । उसे अंदर इस ओर का आकर्षण रहा करता है क्योंकि ‘कमिंग इवेन्ट्स कास्ट देयर शैडोज़ बिफोर ।' इसलिए खुद को पता चल जाता है कि 'उसके शैडोज़ क्या है ?' इसलिए हम कोई दबाव नहीं डालते ।
अब इसमें परेशानी कहाँ आती है कि इसमें अगर नकलें होने लगें तो। उसमें उनसे कहता हूँ कि 'नकल करोगे तो मार खाओगे, इसमें नकल मत करना।' इसलिए मैं इन्हें सावधान करता रहता हूँ कि, ‘भाई, यदि इसमें नकल करोगे तो हम छूएँगे नहीं, हम एक्सेप्ट भी नहीं करेंगे, असली को एक्सेप्ट करेंगे।' नकली होगा तो फिर ज़िम्मेदारी उसकी। हमें तो असली लगे तभी कुछ ज़िम्मेदारी लेते हैं। लेकिन हमें ज़रूरत ही कहाँ है ? हम तो मोक्ष का मार्ग दिखाने आए हैं। हमने उसे आत्मज्ञान दिया और कहा, 'आज्ञा पालन करना।' हमारी ज़िम्मेदारी का वहाँ पर एन्ड आ जाता है।
प्रश्नकर्ता : वह नकल कर रहा है या असल है, वह कैसे परख सकते हैं? वह खुद नहीं परख सकता, तभी तो आपसे कहते हैं कि हमारी परख कर दीजिए ।
दादाश्री : मैं कहाँ उसमें हाथ डालूँ? हम हाथ नहीं डाल सकते। हमें तो अन्य कई तरह के उपयोग रखने पड़ते हैं। हमारे तो इतने सारे अन्य उपयोग होते हैं कि अगर ऐसी बातों में मैं उपयोग रखने जाऊँ तो इसका अंत ही नहीं आएगा न! हम तो, उसका अहित नहीं हो, अंत तक उसके पीछे हमारी वैसी हेल्प रहती ही है। हमारा तो चारों ओर से रक्षण रहता ही है।