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________________ ३५८ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) कुछ भी करे, फिर भी हम उसे आधार देने के लिए तैयार हैं क्योंकि हमारी इच्छा ही ऐसी है। अब आप ऐसे भाव करोगे तो आपको सभी संयोग भी वैसे ही मिलेंगे। हम तो बारबार इन लड़कों का टेस्ट लेते रहते हैं। उन्हें लालच देते हैं कि 'कर ले न शादी अब, छोड़ न, शादी करने में तो बहुत मज़ा है।' उनका टेस्ट लेता हूँ कि उनका कच्चा है या पक्का है! यह ब्रह्मचर्य व्रत किसी को नहीं दे सकते। यह तो हम एकाध साल के लिए या दो साल के लिए ही देते हैं। हमेशा के लिए देने के लिए तो मुझे कितनी सारी परीक्षा लेनी पड़ती है! हमारा वचनबल ब्रह्मचर्य पालन करवाए ऐसा है, सभी अंतराय तोड़ देता है, तेरी इच्छा होनी चाहिए। तेरी इच्छा प्रतिज्ञा में परिणमित होनी चाहिए। हाँ, बाद में यदि तुझे कोई अंतराय आएगा तो वह हमारा वचनबल तोड़ देगा। कोई एक बड़ा पानी का नाला हो और कोई उसे पार नहीं कर सक रहा हो तो उसके पीछे जाकर मैं उसे कहता हूँ कि, 'कूद जा' तो फिर वह कूद जाता है। यों खुद कूद सके, ऐसी शक्ति नहीं हो फिर भी कूद जाता है क्योंकि इस शब्द से उसे शक्ति प्राप्त होती है। उसी तरह अभी इन लड़कों को ब्रह्मचर्य लेना है, उन सब में हम शक्ति डालते हैं, उससे शक्तिपात होता है लेकिन यह शक्तिपात अलग प्रकार का है। जगत् में जो शक्तिपात होते हैं, वे सब भौतिक हैं। वास्तव में शक्तिपात जैसी कोई चीज़ है ही नहीं। यह तो सामनेवाले को ऐसा लगता है कि मुझे शक्ति प्राप्त हो गई। यह सब नियम से ही है। कोई किसी को देता नहीं और कुछ नहीं देता। यह तो खुद की ही शक्ति अनावृत होती है। ज्ञानी के बोलने से शक्ति अनावृत हो जाती है इसलिए खुद के मन में ऐसा लगता है कि मेरे अंदर कुछ डाला। ये सभी निर्बल ही थे न! ये अभी कितने आनंद में है, मानो दादाने शक्ति भर दी!
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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