SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 391
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) उसी का चलता रहेगा । जब तक वह चिपका हुआ उखड़े नहीं तब तक तेरा अच्छा चलता रहेगा। अब वापस कब उखड़ जाएगा ? ३३८ प्रश्नकर्ता : अब नहीं उखडूंगा। I दादाश्री : तब ठीक है ! ऐसे चिपके रहोगे तभी चल पाएगा। क्योंकि यहाँ जो चिपका रहा, कृपा उस पर काम किए बिना रहेगी नहीं, यह मार्ग ऐसा करुणामय है । कैसा मार्ग है ? खुद का बिगाड़कर भी करुणामय मार्ग है। खुद की कमाई भले ही कम हो जाए, लेकिन उसे संभालकर, उसकी कमाई शुरू करवाकर दुकान फिर से शुरू करवा देते हैं। इस संसार में भी कोई दोस्त हो, जानपहचानवाला हो, तो उसका नहीं चल रहा हो तो भी कुछ भी करके शुरू करवा देते हैं । व्यवहार में भी रास्ते पर ला देते हैं। ऐसा करवा देते हैं न? अभी तो तू पढ़ रहा है, कॉलेज पूरा नहीं हुआ है। इसलिए अभी पूरा हिसाब निकालेगा तो चलेगा अगर अभी कर लिया तो उस समय काम आएगा। बाद में कोलेज खत्म हो जाने के बाद तो ऑफिस लेकर बैठेगा और ऑफिस में एक मिनट की भी फुरसत नहीं मिलेगी। हम समझते हैं कि अभी तो बहुत टाइम है और बाद में यह पूरा कर लेंगे! लेकिन इस काल में सभी व्यापार ऐसे हैं कि एक मिनट की भी फुरसत नहीं मिलती और पूरे दिन मगज़मारी, भले ही पैसे कमाएगा लेकिन यहाँ का कोई काम नहीं हो पाएगा। अभी किया होगा तो उस समय वहाँ बैठेबैठे सब ध्यान में रहेगा, तो थोड़ा कुछ हो पाएगा। ये तो सारे ऐसे कामकाज हैं कि दादा भी वापस नहीं मिल पाएँ ! अभी यह सब तुम्हारे लक्ष्य में नहीं है न ? इसमें से किसी चीज़ का ध्यान भी नहीं रहता न ? यह तो कुदरत चलाए, उसी तरह चल रहा है। खुद की जागृति का एक अंश भी नहीं है। अपने यहाँ कई अफसर दर्शन करके गए हैं। कहते भी हैं कि यही करने जैसा है। लेकिन करें कैसे ? व्यापार तो एक प्रकार की जेल है। उस
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy