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________________ फिसलनेवालों को उठाकर दौड़ाते हैं (खं - 2-१६) खाने नहीं आए है। फिर भी पेड़ा प्रसाद के तौर पर रखना । वह भी व्यवहार है न?! ३३७ व्यापार में खो गए कि खोए खुदा यह तो अपने आप झूठ-मूठ का समाधान लेकर दिन निकाल रहा है! और उसका रिजल्ट भी आए बिना नहीं रहता न। भले ही कितना भी कहे, 'मैं पढ़ रहा हूँ, मैं पढ़ रहा हूँ।' लेकिन छः महीने के बाद उसका रिज़ल्ट तो आएगा ही न ? तब पोल पता चल जाएगी न! तुझे समझ में आ रहा है यह सब ? कॉलेज में जाने के बाद पास तो होना पड़ेगा न ? जो व्यापार शुरू किया है, वह पूरी तरह से तो करना चाहिए न ? 'शादी करनी है' तो ऐसा तय करके रखना और 'ब्रह्मचर्य पालन करना है' तो वह तय करके रखना। ब्रह्मचर्य पालन करना हो तो फिर पूरा-पूरा निश्चय तो होना चाहिए न ? ये तो व्यापार में दुकान का करने जाते हैं और वापस फुटबॉल भी खेलने जाते हैं, बोल- बेट भी खेलने जाते हैं, तो उससे कहीं भला होता होगा ? भला करना है, तो रास्ता तो निकालना पड़ेगा न ? या ऐसा चलेगा ? पोलम्पोल चलेगी ? ! प्रश्नकर्ता : नहीं चलेगी। दादाश्री : बाकी लोगों की टोली जा रही है, उस तरह टोली में रहते हैं, इस हिसाब से अच्छा है ! उसमें फिर हमें कहाँ लक्ष्य रखना पड़ेगा कि, 'कौन आगे जा रहा है ? वह क्यों आगे जा रहा है? मैं क्यों इतना पीछे रह गया ?' बाकी मोक्षमार्ग में तो निरंतर जागृत रहना पड़ता है कि 'मेरी क्या गलती रह जाती है?' ऐसा पता तो लगाना ही पड़ेगा न! बाकी संसार की इच्छा तो करने जैसी है ही नहीं। संसार तो सहज स्वभाव से चलता रहे ऐसा है। अब इतने समय से मेहनत की है, उसमें मेरा भी इतना सारा टाइम गया है । तेरा भी कितना टाइम गया है। इसलिए मुझे कुछ संतोष हो, ऐसा कुछ कर। यहाँ ये सारे लड़के हैं, उन सभी को पूरा दिन कितना अच्छा बरतता है ! यहाँ तो जो चिपक गया और लिपट गया,
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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