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________________ 'विषय' के सामने विज्ञान से जागृति (खं-2-१५) ३२१ कि अभी किस का विचार शुरू हुआ? वह विचार आने के बाद उसे ज़्यादा नहीं चलने देना चाहिए। वह विचार ध्यान में परिवर्तित नहीं हो जाना चाहिए। विचार भले ही आए। विचार तो अंदर हैं इसलिए आए बिना रहेंगे नहीं। लेकिन वह ध्यान में परिवर्तित नहीं होना चाहिए। ध्यान में परिवर्तित होने से पहले ही विचार को उखाड़कर फेंक देना चाहिए। प्रश्नकर्ता : ध्यान में परिवर्तित नहीं होना यानी कैसे? दादाश्री : उसी विचार में रमणता करते रहना, उसे ध्यान में परिवर्तित होना कहते हैं। अगर आप एक ही विचार में रमणता करते रहो, तो वह उस विचार का ध्यान कहलाता है। उससे फिर बाहर बेध्यानपना रहता है, क्या ऐसे बेध्यानवाले नहीं होते लोग? तेरा ध्यान कहाँ है, लोग ऐसा नहीं पूछते? तब हमें पता चलता है कि ध्यान यहाँ पर है। जहाँ 'दादा' ने मना किया था, वहाँ है। उन्हीं विचारों में रमणता चलती रहे तो वह ध्यान कहलाता है। वह ध्यान फिर उसके ध्येय स्वरूप बन जाता है। उन विचारों का ध्यान हुआ, फिर अपना चलता ही नहीं। ध्यान नहीं हुआ तो कोई हर्ज नहीं। प्रश्नकर्ता : ध्यान में परिवर्तित नहीं हुआ और वह उखड़ गया है, ऐसा कैसे पता चलेगा? दादाश्री : उगते ही हमें वह चीज़ फेंक देनी चाहिए और फिर आगे उस विचारधारा को बदल देना पड़ेगा, दूसरी रख देनी पड़ेगी। नहीं तो फिर जाप शुरू करना पड़ेगा। वह टाइम बीत जाए तो फिर उसकी मुद्दत निकल जाएगी। हमेशा हर एक चीज़ का टाइम होता है कि साढ़े सात से आठ तक ऐसे विचार आएँ और अगर उतना टाइम गुजार दें तो फिर हमें परशानी नहीं है। देखने से पिघलें, गाँठे विषय की प्रश्नकर्ता : लेकिन गाँठे तो देखने से पिघलेंगी न? तो
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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