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________________ 'विषय' के सामने विज्ञान से जागृति (खं-2-१५) ३१९ दादाश्री : जितना भी पता चलता है वह इस 'ज्ञान' की वजह से पता चलता है, वर्ना दूसरा तो मूर्छित हो जाए। इस 'ज्ञान' की वजह से पता चलता है इसलिए फिर हमें उसका प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। फिर हमें निर्मल दृष्टि दिखानी चाहिए। अपने में रोग होगा तभी सामनेवाला व्यक्ति अपना रोग पकड़ सकेगा न? और यदि वह अपनी निर्मल दृष्टि देखे तो? दृष्टि निर्मल करना आता है या नहीं आता? प्रश्नकर्ता : ज़रा और समझाइए कि दृष्टि कैसे निर्मल करनी दादाश्री : 'मैं शुद्धात्मा हूँ' इस जागृति में आ जाने के बाद, फिर दृष्टि निर्मल हो जाती है। अगर नहीं हुई हो तो शब्दों में पाँच-दस बार बोलना कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ, मैं शुद्धात्मा हूँ, मैं शुद्धात्मा हँ' तब भी वापस आ जाएगा और 'दादा भगवान जैसा निर्विकारी हूँ, निर्विकारी हूँ' ऐसा बोलेंगे तब भी वापस आ जाएगा। इसका उपयोग करना पड़ेगा, बाकी कुछ नहीं। यह तो विज्ञान है, तुरंत फल देता है और यदि ज़रा सा भी गाफिल रहा तो दूसरी तरफ फेंक दे ऐसा है! अन्य कोई चीज़ बाधक हो, ऐसी नहीं है। स्त्री का स्पर्श हो जाए और फिर भीतर भाव बदल जाए तो वहाँ जागृति रखनी है। क्योंकि स्त्री जाति के परमाणु ही ऐसे हैं कि सामनेवाले के भाव बदल ही जाते हैं। यह तो, जब हम (दादाश्री) हाथ रखते हैं तो उसे अगर विचार आया हो तो बल्कि वह भी बदल जाता है, उसके ऐसे खराब विचार ही गायब हो जाते हैं! विषय की योजना के अलावा बाकी सभी योजनाएँ, शायद अगर तोड़-फोड़ करे तो चला लेंगे। क्योंकि बाकी सभी मिश्रचेतन के साथ की योजनाएँ नहीं है, जबकि यह विषय की योजना तो मिश्रचेतन के साथ की योजना है। हम छोड़ दें, फिर भी सामनेवाला
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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