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________________ २६४ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) को दी ही है न?! लेकिन इस भोजन का बहुत असर होता है। हमने अब भोजन का त्याग करने को नहीं कहा है। अपने आप यदि त्याग हो जाए तो अच्छा। जिसे संयम लेना है, संयम यानी ब्रह्मचर्य पालन करना है, वह अगर अधिक भोजन लेगा तो उसे खुद को उल्टा 'इफेक्ट' होगा। फिर उसे उस उल्टे ‘इफेक्ट' के रिज़ल्ट भुगतने पड़ेंगे। जिसे ब्रह्मचर्य पालन करना है, उसे ख्याल में रखना है कि कुछ प्रकार के आहार से उत्तेजना बढ़ जाती है। वह आहार कम कर देना चाहिए। चरबीवाले आहार जैसे कि घी-तेल वगैरह नहीं लेने चाहिए, दूध भी कुछ कम लेना चाहिए, लेकिन दाल-चावल-सब्जी-रोटी वगैरह आराम से खाओ और उस आहार की मात्रा कम रखना। ज़बरदस्ती मत खाना। यानी आहार कितना लेना चाहिए कि नशा न चढ़े और रात को तीन-चार घंटे ही नींद आए, उतना आहार लेना चाहिए। प्रश्नकर्ता : ये साइन्टिस्ट कहते हैं कि छ: घंटे की नींद होनी चाहिए। दादाश्री : तो इन गाय-भैंसों से पूछ आओ कि तुम कितनी देर सोते हो? मुर्गे से पूछ आओ कि कितनी देर सोता है ? निद्रा ब्रह्मचारी के लिए नहीं है! निद्रा तो कहीं होती होगी? निद्रा तो ये जो मेहनत करनेवाले हैं, वे छ: घंटे सोते हैं। उन्हें गहरी नींद आ भी जाती है! नींद तो कैसी होनी चाहिए कि जब ट्रेन में बैठकर जाते हैं, तब पाँच-दस झोंके आ जाएँ कि बस हो गया, फिर सुबह हो जाती है। यह तो आहार का पूरा नशा चढ़ता है, फिर सोता भी है! आहार में घी-शक्कर करवाते हैं विषयकांड आहार भी बहुत कम मत कर देना। क्योंकि आहार कम खाओगे तो ज्ञानरस जो कि आँखों को लाइट देता है, वह ज्ञानरस जो इन तंतुओ में से जाता है, वह रस फिर अंदर नहीं जाता और नसें सारी सूख जाती है। जवानी है, इसलिए यों घबराकर
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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