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________________ तितिक्षा के तप से गढ़ो मन-देह (खं-2-१२) २६३ मुँह चलता रहना चाहिए। यानी कभी भी ऐसे खाते रहना, वह तो बहुत गलत है। बीच में नहीं खाना चाहिए। खाने के बाद कुछ भी नहीं डालना चाहिए। उणोदरी मतलब हमें भोजन की मात्रा समझ में आ जाती है कि आज बहुत भूख लगी है, इसलिए तीन लड्डू खा सकेंगे तो एक लड्डू कम कर देना। कभी दो लड्डू खा सकेंगे, ऐसा लग रहा हो तो तब सवा लड्डू खाना। जितनी हमें समझ में आए, मात्रा उससे कुछ न्यून कर देनी चाहिए। कम कर देनी चाहिए। नहीं तो पूरे दिन डोजिंग रहेगी। मूलतः जगत् के लोग, एक तो खुली आँखों से सोते हैं और ऊपर से वापस ऐसे डोजिंग हो जाता है। जागृति और इसका, इन दोनों का मेल कैसे बैठ सकता है? अतः उणोदरी जैसा अन्य कोई तप नहीं है। भगवान ने बहुत ही सुंदर रास्ता बताया है कि कम रखना। कोई आठ लड्डू खाता हो तो उसे पाँच लड्डू खाने चाहिए। रोज़ एक लड्डू खाता हो तो वह कहेगा, 'मैं तो एक ही लड्डू खाता हूँ' वह भी नहीं चलेगा। उसे पौना लड्डू खाना चाहिए। वीतरागों ने एक-एक वाक्य बड़ी समझदारी से कहा है जो कि जगत् के लिए हितकारी रहे! आहार जागृति से रक्षा करना व्रत की प्रश्नकर्ता : भोजन और ज्ञान का क्या लेना देना है? दादाश्री : भोजन कम होगा तो जागृति रहेगी, वर्ना जागृति रहेगी ही नहीं न! प्रश्नकर्ता : भोजन से ज्ञान में कितनी बाधा आती है? दादाश्री : बहुत बाधा आती है। आहार बहुत बाधक है। क्योंकि यह भोजन जो कि पेट में जाता है, उससे फिर दारू बनता है और पूरे दिन फिर शराब का नशा चढ़ता ही जाता है। वर्ना मैंने जो ये पाँच आज्ञाएँ दी हैं, उनकी जागृति क्यों नहीं रह पाती? उसमें कौन सी बड़ी बात है? और जागृति भी सभी
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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