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________________ २६० समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) हमें उपवास की ज़रूरत नहीं है, लेकिन 'अपना ज्ञान' ऐसा है कि उपवास में बहुत जागृति रहती है। अच्छा काल हो और उपवास हो तो केवलज्ञान हो जाए! लेकिन यह काल ही ऐसा नहीं है न! उपवास में क्या होता है? इस शरीर में जो जमा हुआ कचरा होता है, वह जल जाता है। उपवास के दिन वाणी की अधिक छूट नहीं हो तो वाणी का कचरा जल जाता है और मन में तो पूरे दिन सुंदर प्रतिक्रमण करता रहे, तरह-तरह का करता रहे, तो ये बाकी का सारा कचरा भी जलता ही रहता है। इसलिए उपवास बहुत ही काम आता है। हफ्ते में एक दिन, रविवार को उपवास करना। लेकिन दो दिन लगातार मत करना, नहीं तो कोई रोग हो जाएगा। जिस दिन उपवास करते हो, उस दिन तो बहुत आनंद होता है न? प्रश्नकर्ता : उपवास किया हो, उस रात अलग ही तरह का आनंद महसूस होता है, इसका क्या कारण? दादाश्री : बाहर का सुख नहीं ले तो अंदर का सुख उत्पन्न होता ही है। बाहर के ये सुख लेते हैं इसलिए अंदर का सुख बाहर प्रकट नहीं होता। प्रश्नकर्ता : यदि खाने में से सुख जाए, तो फिर बाकी सब में भी फीका ही लगता है। दादाश्री : बाकी में फिर रहा ही क्या? जीभ का ही सारा झंझट है न?! जीभ का और यह स्त्री परिग्रह, दो ही झंझट हैं न? और कोई झंझट है ही नहीं न?! कान तो, सुना तो भी क्या और नहीं सुना तो भी क्या? आँखो से देखना लोगों को बहुत अच्छा लगता है, लेकिन आप के लिए वह बहुत रहा नहीं है न! आँख के विषय रहे नहीं हैं न? सिनेमा देखने नहीं जाते न?
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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