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________________ तितिक्षा के तप से गढ़ो मन-देह (खं-2-१२) २५९ न(निरीक्षण करे), जितना वह देखेगा, उतनी ही उसमें शक्ति आएगी। मैं उस रूप हो गया हूँ और आप धीरे-धीरे उस रूप होते जा रहे हो। तो एक दिन उस रूप हो जाओगे। लेकिन आपको छोटा रास्ता मिल गया है और मुझे तो बहुत लंबा रास्ता मिला था। मैं त्याग और तितिक्षा कर-करके आया हूँ। तितिक्षा तो बेहिसाब की हैं। एक दिन चटाई पर सो जाना, एक दिन दो गद्दों पर सो जाना। यदि चटाई पर आदत पड़ जाए तो दो गद्दों पर नींद नहीं आए और गद्दे पर आदत पड़ जाए तो चटाई पर नींद नहीं आए! प्रश्नकर्ता : हमें भी आपकी तरह त्याग और तितिक्षा में से गुजरना पड़ेगा? दादाश्री : नहीं, आपको ऐसा कुछ रहा नहीं न! आपको तो ऐसे ही 'फ्री ऑफ कॉस्ट' मिला है। इसलिए आपकी गाड़ी तो चलती रहेगी। आपके पुण्य तो बहुत ज्यादा है न! उपवास-उणोदरी मात्र 'जागृति' हेतु मैंने पूरी जिंदगी में एक भी उपवास नहीं किया! हाँ, चोविहार (सूर्यास्त से पहले भोजन करना) किए हैं, बाकी कुछ भी नहीं किया। मेरी प्रकृति पित्तवाली इसलिए एक भी उपवास नहीं हो पाता। अब हमें इसकी ज़रूरत क्या है? हम आत्मा हो चुके हैं !! अब यह सब पराया, पराए देश का और फॉरिन डिपार्टमेन्ट में हमें इतना क्या झंझट? यह तो जिसे ब्रह्मचर्य व्रत लेना है, उसे यह झंझट करना है। वर्ना अपने ‘पाँच वाक्यों' में तो सबकुछ आ जाता है। ये पाँच वाक्य ऐसे हैं कि इनसे निरंतर संयम परिणाम रह सकता है। लोग जो संयम रखते हैं, वह संयम माना ही नहीं जाएगा। उसे व्यवहार संयम कहते हैं, जिसे कि व्यवहार में लोग देख सकते हैं! जबकि अपना तो वास्तव में संयम है। लेकिन लोग ऐसा नहीं कहेंगे कि आपको संयम है। क्योंकि आपका निश्चय संयम है। निश्चय संयम, वह मोक्ष का कारण है और व्यवहार संयम, वह संसार का कारण है, संसार में ऊँची पुण्य बंधवाता है।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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