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________________ सेफ साइड तक की बाड़ (खं-2-११) २४५ देर लगती है और सत्संगी को कुसंगी बनाना हो तो तुरंत, एक कुसंगी परिचित मिल जाए तो तुरंत सबकुछ ठिकाने(!) पर ला देता है। इसलिए किसी पर विश्वास नहीं कर सकते। जो कोई अपना विश्वासपात्र हो, उसी के संग घूमना चाहिए। कुसंग ही पोइजन है। कुसंग से तो बहुत दूर रहना चाहिए। कुसंग का असर मन पर होता है, बुद्धि पर होता है, चित्त पर होता है, अहंकार पर होता है, शरीर पर होता है। सिर्फ एक ही साल के कुसंग से होनेवाला असर तो पच्चीस-पच्चीस साल तक रहा करता है। यानी एक ही साल का कितना खराब फल आता है, फिर वह पछतावा करता रहे फिर भी छूट नहीं पाता और एक बार फिसलने के बाद और ज्यादा गहराई में उतरते जाता है और ठेठ तले तक उतार देता है। फिर अगर पछतावा करे, वापस लौटना चाहे फिर भी लौट नहीं सकता। अत: जिसका संग सुधरा, उसका सबकुछ सुधर गया और जिसका संग बिगड़ा, उसका सबकुछ बिगड़ गया। सब से बड़ा जोखिम कुसंग है। सत्संग में पड़े रहनेवाले को दिक्कत नहीं आती। लश्कर तैयार करके उतरो जंग में वीरो प्रश्नकर्ता : जितनी भी गाँठे हैं, उनमें से विषय की गाँठ ज़रा ज़्यादा परेशान करती है। दादाश्री : कुछ गाँठे ज़्यादा परेशान करती हैं। उसके लिए हमें लश्कर तैयार रखना पड़ेगा। ये सभी गाँठे तो धीरे-धीरे एकज़ॉस्ट होती ही रहती हैं, घिसती ही रहती हैं, एक दिन वे सब इस्तेमाल हो ही जाएँगी न?! पाकिस्तान का लश्कर भले ही कभी भी हमला करे, उसके लिए अपने हिन्दुस्तान ने तैयारी रखी है या नहीं? वैसी तैयारी रखनी पड़ेगी। प्रश्नकर्ता : इसीलिए ब्रह्मचारियों के संग में रहना है न?
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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