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________________ 'फाइल' के सामने सख़्ती (खं-2-९) २२७ है! इतना ही सावधान रहने जैसा है। बाकी सभी कुछ खानापीना न, मैं कहा मना कर रहा हूँ? सख्त, इस तरह हो सकते हैं प्रश्नकर्ता : सामनेवाली फाइल, वह हमारे लिए फाइल नहीं है, लेकिन उसके लिए हम फाइल हैं, ऐसा हमें पता चले तो हमें क्या करना चाहिए? दादाश्री : तब तो और भी जल्दी खत्म कर देना। ज़्यादा सख्त हो जाना चाहिए। वह कल्पना करना ही बंद कर देगी न। न हो तो बेतुका बोलना। उससे कहना कि, 'चार थप्पड़ लगा दूंगा, यदि तू मेरे सामने आई तो! मेरे जैसा सिरफिरा नहीं मिलेगा कोई।' ऐसा कहोगे तो फिर वापस नहीं आएगी। वह तो इसी तरह खिसकेगी। प्रश्नकर्ता : ऐसा क्रैक बोलना तो मुझे अच्छे से आता है। दादाश्री : हाँ। तुझे ऐसा सख्त बोलना अच्छे से आता है और इन सभी को सिखाना पड़ता है। तुझे सहज आता है। ढीला पड़ना, वह तो सब रोग ही है। यह तो तुम्हें भान ही नहीं है कि उल्टा बोलकर छूट सकते हैं। अपमान किसी को भी अच्छा नहीं लगता। जो फाइल हो, उसे भी अच्छा नहीं लगता। वह भी बेशर्म नहीं होती। अपमान करने पर क्या वह फाइल खड़ी रहेगी?! फिर कल्पनाएँ करना ही बंद कर देगी न? और जब तक यह ढीला रहेगा न, तब तक कल्पनाएँ करती रहेगी। उसके कल्पना करने से अपना मन ढीला पड़ जाता है। इफेक्ट है सारा। भले ही तेरी दृष्टि उस पर नहीं हो, लेकिन अगर वह कल्पना करे तो तेरे अंदर बहुत इफेक्ट होता है, इसलिए फिर गिरता है। इसलिए ऐसा कर देना चाहिए कि वह कल्पनाएँ करना ही बंद कर दे, बल्कि जब-तब गालियाँ दे। तब फिर अपने बारे में कहेगी,
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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