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________________ 'फाइल' के सामने सख़्ती (खं-2-९) २१७ कुछ समझता ही नहीं है, तो फिर फिर वह चली जाएगी। तुझे कोई ऐसी मिल जाए, तो वह ऐसा समझेगी कि यह सब समझ गया है? क्या तू ऐसा बताने जाता है? वह सब बेवकूफी कहलाएगी। व्यापारी का बेटा व्यापार करने बैठा हो तो सौ रुपये की चीज़ की कीमत सौ रुपये के बदले अठासी रुपये बोल दे तो फिर वह ग्राहक कहेगा, 'माल बताओ।' तब वह लड़का समझ जाता है कि बोलने में मेरी गलती हो गई है, तो फिर वह क्या करेगा? उन्हें कहेगा कि, 'ऐसा माल छियासी में मिलेगा और दूसरा छियासठवाला भी है और एक सौ पाँच रुपयेवाला भी है' ऐसा सब बोलने से गलतियाँ सब खत्म हो जाएँगी और वह समझ जाएगा कि यह बात पूरी अलग है। उसी तरह इसमें भी सामनेवाले इंसान को पता चल जाता है कि यह माहिर नहीं है। हम माहिर हैं या नहीं, ऐसा वह एक बार देख लेती है। ऐसा पता चल जाए कि माहिर नहीं है, तो राह पर आ जाएगा, फिर वह छोड़ देगी और बेवकूफ बन जाए तो उसका सब चला जाएगा। वह फँसा देगी। यदि अपना मन परेशान हो जाए तो हमें बुद्धि का इस्तेमाल करना है कि 'तुझ में अक्ल नहीं है।' ऐसा कहेंगे तो वह अपने आप ही भाग जाएगी लेकिन अगर भाग गई, तो फिर दवाई लगानी पडेगी। इस तरह भगाने में फायदा नहीं है, लेकिन वह तो अगर और कोई चारा नहीं हो तो। अपना मन परेशान हो जाए, तब ऐसा करना पड़ता है। वर्ना ऐसे के साथ नज़र ही नहीं मिलाएँ तो बहुत हो गया। सब से अच्छा नज़र ही नहीं मिलानी चाहिए। नीचे देखकर चलना, आगे-पीछे हो जाना, वे सब सरल मार्ग है। आकर्षण में बह मत जाना, जहाँ आँखें आकृष्ट हों, वहाँ से दूर ही रहना। जहाँ सीधी आखें हों, ऐसी सब जगह व्यवहार करना लेकिन जहाँ आँखें आकर्षित होने लगें, वहाँ पर जोखिम है, लाल बत्ती है। किसी के भी साथ नज़रें मिलाकर बात मत करना, नज़रें नीची रखकर ही बात करनी चाहिए। दृष्टि से ही बिगड़ता है। उस
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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