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________________ २१० समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) वे परमाणु ही खुद विकर्षण करवाते हैं, अलग करवा देते हैं। प्रश्नकर्ता : विकर्षण होता है तब खुद परमाणु ही अलग करवा देते हैं। दादाश्री : हाँ, खुद ही विकर्षण करवा देते हैं, उसे अमल देकर। प्रश्नकर्ता : मतलब वह कैसे? दादाश्री : उसका अमल फल देकर और खुद ही विकर्षण रूपी बन जाता है। प्रश्नकर्ता : अर्थात यह उसका नियम ही है कि यदि आकर्षण हुआ तो फिर उसका ऐसा विकर्षण परिणाम आएगा ही। दादाश्री : आकर्षण-विकर्षण, यह नियम ही है। आकर्षण कब तक कहलाएगा? विकर्षण जब तक इकट्ठा नहीं होता, तब तक फल नहीं देता है। विकषर्ण का संयोग इकट्ठा हुआ कि फल देना शुरू कर देगा। प्रश्नकर्ता : आकर्षण फल देना शुरू कर दे तो, उसके बाद क्या होता है? दादाश्री : फिर खत्म हो गया! इंसान मर ही गया। आप ब्रह्मचर्य के निश्चयवालों को कोई परेशानी नहीं है। एक बार भोगा कि गया यह विषय ऐसी चीज़ है कि जिस तरह मन और चित्त जा रहे हों, उन्हें उस तरह नहीं रहने देता। और एक बार इसमें पड़ा कि इसी में आनंद मानकर चित्त का वहाँ जाना बढ़ जाता है। 'बहुत अच्छा है, बहुत मज़ेदार है' ऐसा मानकर निरे अनगिनत बीज डल जाते हैं।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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