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________________ स्पर्श सुख की भ्रामक मान्यता (खं - 2- ८) दादाश्री : ठीक है । वह बहुत अच्छा है। यह तो मैं तुम्हें सावधान कर रहा हूँ कि कभी यों गलती से हाथ लग जाए न, तो मुझे बताना, स्त्री जाति जान-बूझकर छू जाती है, कई बार तो । प्रश्नकर्ता : वह इलेक्ट्रिसिटी कैसी होती है? आपने कहा न कि 'इलेक्ट्रिसिटी ऐसी होती है कि मुझे धोनी पड़ेगी ।' २०९ दादाश्री : उसके परमाणुओं का असर हो जाता है। अट्रैक्शन के परमाणु बढ़ते जाते हैं और आँखों से देखा, उसके परमाणु सूक्ष्म होते हैं और सूक्ष्म में से स्थूल खड़ा होता है और फिर उसमें से आकर्षण होता है। आकर्षण बढ़ता ही जाता है। आकर्षण बढ़कर फिर उसका विकर्षण होता है। विकर्षण शुरू होना हो, तब पहले कार्य होता है। फिर विकर्षण होता रहता है। कार्य शुरू हुआ, तभी से विकर्षण शुरू होता है। कार्य की शुरूआत तक आकर्षण होता रहता है और कार्य पूरा हो जाने पर विकर्षण होता रहता है। परमाणुओं का अट्रैक्शन ऐसा हैं। अब दिक्कत नहीं आएगी। दादा मेरे साथ हैं, ऐसे बोलोगे तो भी राह पर आ जाएगा। प्रश्नकर्ता : परमाणुओं का यह नया विज्ञान बताया । दादाश्री : यह सब कहने जैसा नहीं है। बाहर कहने जैसा नहीं है। यह तो निजी तौर पर लोगों को जितनी ज़रूरत हो, उतनी ही बात करते हैं और बाहर बताने का क्या अर्थ है ? लोग, जगत् छूए बिना रहनेवाला नहीं है। प्रश्नकर्ता : तो उस स्पर्श से परमाणु उसे नीचे कहाँ तक घसीटकर ले जाते हैं ? दादाश्री : हाँ, मतलब परमाणु का अट्रैक्शन ही सब काम करता है। उस बेचारे के तो हाथ में ही नहीं रहती सत्ता और जब विकर्षण होता है, तब उसे अलग नहीं होना हो फिर भी
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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