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________________ १६२ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) मील चले, फिर मन कहे, कि 'आज रहने दो न!' तब वापस चला जाता है यह तो। तो वहाँ पर वापस नहीं जाना है। लोग भी क्या कहेंगे? यह बेअक्ल है या क्या है? जाकर वापस आ गए। तुम्हारा ठिकाना नहीं है क्या? लोग ऐसा कहेंगे या नहीं कहेंगे? मोक्ष में जाने का निश्चय है क्या तेरा? उसमें कुछ बीच में आए तो? मन अंदर शोर मचा दे तो? प्रश्नकर्ता : फिर भी निश्चय नहीं डिगेगा। दादाश्री : वह इंसान कहलाएगा। इन सब का क्या करना है? तुझे ये सभी बातें समझ में आती है? प्रश्नकर्ता : थोड़ा थोड़ा समझ में आ रहा है। मुझे तो ऐसा ही लगता है कि मेरा निश्चय है। दादाश्री : कैसा निश्चय? मन के कहे अनुसार तो चलता है! निश्चयवाले का मन ऐसा होता होगा? मन होता है, लेकिन हेल्पिंग होता है, सिर्फ खुद की ज़रूरत जितना ही। जैसे कि जो बैल होता है, वह खुद के मालिक के कहे अनुसार चलता है न! लेकिन हमें इधर जाना हो और वे उधर जा रहा हों तो? भले ही शोर मचाएँ प्रश्नकर्ता : मन को इन्टरेस्ट नहीं आए, तो वह शोर मचाएगा न? दादाश्री : भले ही शोर मचाए! सभी के मन ऐसे ही शोर मचाते हैं। मन तो शोर मचाएगा। वह तो टाइम हो जाए तब शोर मचाता है। शोर मचाए, उसमें क्या दावा करेगा? थोड़ी देर बाद फिर कुछ भी नहीं, जब उसकी मुद्दत पूरी हो जाए तब। फिर पूरे दिन शोर नहीं मचाएगा। यदि उसमें तू फँस गया तो फँसा। वर्ना अगर नहीं फँसा तो कुछ भी नहीं, तू स्ट्रोंग रह न! प्रश्नकर्ता : कभी-कभी स्ट्रोंग रह सकते हैं।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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