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________________ नहीं चलना चाहिए, मन के कहे अनुसार (खं-2-५) १६१ प्रश्नकर्ता : विचार उदयकर्म के अधीन तो नहीं फूटते हैं न? दादाश्री : लेकिन अगर अपना निश्चय हो तो सामायिक करना। निश्चय नहीं हो, भीतर प्रकृति को अनुकूल नहीं हो तो मत करना। बाकी विचार, वे तो उदयकर्म के अधीन आते हैं। 'उन्हें हमें देखना है', वह अपने पुरुषार्थ की बात है। विचारों को देखें तो, वहीं पर वह उदयकर्म खत्म हो जाता है। देखते ही खत्म! उनमें परिणमन हो जाए, (उस रूप हो जाएँ) तब तो उदयकर्म शुरू हो जाएगा! ध्येय अनुसार चलाओ.... अभी तो छोटी बातों में, एक तय कर लिया है कि मन का नहीं सुनना मतलब जितना काम का हो उतना सुनना है और काम का नहीं हो उसे नहीं। गाड़ी अपने तय किए रास्ते पर चल रही हो तो हमें चलने देना है और बाद में यदि यों घूम जाए तो हमें ध्येय अनुसार चलाना है। हर एक चीज़ में ऐसा करना होता है। यह तो कहेगा, 'यह इस ओर दौड़ रही है। अब मैं क्या करूँ?' अब उस बैलगाड़ी को कोई घर में घुसने देगा? प्रश्नकर्ता : नहीं। लेकिन अंदर जो अच्छी लगती हो, वह चीज़ नहीं करनी है? दादाश्री : ऐसा करना किसे अच्छा लगता होगा? मैं क्या नाश्ता नहीं करता? लेकिन उसे ऐसा रखना है कि नापसंद है। प्रश्नकर्ता : हम तो ऐसा रखते हैं कि सुबह उठकर आपके पास आना है। अन्य कोई निश्चय नहीं। कुछ बातों में मन का कहा सुनते हैं। जो व्यवहार मान्य हो, वैसा। दादाश्री : अपने कहे अनुसार चलना। अपनी ज़रूरत हो, अपना ध्येय हो, उस अनुसार चलना। हम बोरसद जाने निकले, फिर आधा
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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