SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषय विचार परेशान करें तब... (खं-2-४) १४१ नहीं कहलाता। बल्कि मन उसे खींच ले गया। मन तो मज़बूत कहलाएगा। प्रश्नकर्ता : इस केस में आपने मन को 'मज़बूत' कहा और इंसान को 'कमज़ोर' कहा। तो इंसान यानी कौन कमज़ोर कहलाएगा? दादाश्री : अहंकार और बुद्धि कमज़ोर हैं। इसमें असल गवर्नमेन्ट का राज है, तो इसमें बुद्धि और अहंकार हैं। इसमें अगर मन का राज हो जाए तो खत्म। मन का तो पार्लियामेन्टरी पद्धति से, उसका सिर्फ एक रोल ही है। वह भी अगर बुद्धि माने, स्वीकार करे, तब अहंकार दस्तखत करता है। वर्ना तब तक दस्तखत भी नहीं होते। प्रश्नकर्ता : यों अकेले सो गए हों न, तो वे विचार फूटते हैं कि ऐसा हो जाए तो? इस तरह विषय भोगें तो? फिर उस समय मुझे आश्चर्य होता है कि मुझे तो ब्रह्मचर्य पालन करना है तो यह सब फूटा कहाँ से? और अच्छे भी लगते हैं, वे विचार। दादाश्री : फूटें उसमें हर्ज नहीं है, लेकिन वे तो तुझे अच्छे लगते हैं? प्रश्नकर्ता : वे किसी को तो अच्छे लगते ही होंगे न अंदर? दादाश्री : ओहो, तुझे किसी से लेना-देना है?! प्रश्नकर्ता : वे जिसे अच्छे लगते हैं, उसे भी निकालना तो पड़ेगा न! दादाश्री : उसे डाँटना, 'यहाँ क्या हंगामा मचा रखा है हमारे घर में? हमारे पवित्र घर में, होम में ?' प्रश्नकर्ता : तो फिर इसका इलाज क्या है? दादाश्री : तुझे इलाज करके क्या करना है?
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy