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________________ १४० समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) दादाश्री : इसीलिए, वह शादी कर ले तो अच्छा है न! प्रश्नकर्ता : नहीं, ऐसा नहीं चाहिए। दादाश्री : ऐसा ही है न! यही तेरी कमज़ोरी है! आँख मारे, उसमें तुझे क्या? थ्री विज़न से देख ले तो, क्या दिखेगा उसमें? तू थ्री विज़न नहीं देखता? माँ-बाप अगर तेरे ध्येय को बदलवा रहे हों तो तू वह नहीं सुनता तो मन की क्यों सुने? उठाकर ले गया कोई? प्रश्नकर्ता : खुद ही खिंच गए। दादाश्री : जो साँप के मुँह में जाए, उसका कोई क्या करे? मन से कह देना कि 'तू अब फँसाएगा तो मैं आप्तपुत्रों को सौ रुपये की आइस्क्रीम खिलाऊँगा या खाना खिलाऊँगा।' तो फिर नहीं करेगा वैसा। एक गलती पर सौ रुपया का दंड! प्रश्नकर्ता : तभी अंदर हुआ कि यह गलत है, फिर भी उस ओर चला गया। मन का मान लिया उस समय। दादाश्री : तो फिर अब गलत हुआ, वह जानता है। ऊपर से यह भी जानता है कि 'समुद्र में डूब जाऊँगा और मर जाऊँगा,' फिर भी यदि कोई जाए तो क्या समुद्र उसे मना करेगा? समुद्र तो कहेगा, 'आ भाई, मैं तो विशाल पेटवाला हूँ। कई लोगों को समा लिया है।' प्रश्नकर्ता : पिछले एक साल से मैं रजिस्ट कर रहा था। दादाश्री : मन तो बहुत मज़बूत है, लेकिन तू खुद कमज़ोर होगा तो फिर से शादी कर लेगा। प्रश्नकर्ता : जब ऐसा हो, तब मन मज़बूत कहलाता है? दादाश्री : इंसान कमज़ोर ही कहलाएगा न! मन कमज़ोर
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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