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________________ दृढ़ निश्चय पहुँचाए पार (खं-2-३) प्रश्नकर्ता : यानी खुद का निश्चय पक्का है। अब बाद में जो होता है, वह तो पूरा उदय का भाग आया न ? १२७ दादाश्री : उदय का भाग कौन सा कहलाता है कि संडास नहीं जाना है, वह ऐसे कहता है। यहाँ घर में तो संडास नहीं कर सकते न! इसलिए संडास को ठेठ तक रोककर रखता है और बाद में जाता है, वह उदय भाग कहलाता है। कहीं पर भी संडास करने बैठ जाए तो उसे उदय भाग नहीं कहा जा सकता । इस विषय में क्या होता है कि यह रस अच्छा लगता है, यह पुरानी आदत है। चखने की आदत है, इसलिए वह फिर उदय भाग में हस्तक्षेप करने जाता है। उदय भाग तो, खुद बिल्कुल मना करता हो और ठेठ तक स्ट्रोंग, मुझे फिसलना नहीं है, ऐसा कहता है। फिर फिसल जाए तो, वह बात अलग है। फिसलनेवाला इंसान कितनी सावधानी रखता है ? सावधानीपूर्वक रहना, तो हर्ज नहीं हैं । प्रश्नकर्ता : अर्थात यह डिमार्केशन बहुत सूक्ष्म है। दादाश्री : बहुत सूक्ष्म है। प्रश्नकर्ता : और खुद ही सख़्त रहकर समझ सकता है। खुद ही सख़्त रहे । दादाश्री : ऐसे सख़्त रहना चाहिए, फिर भी फिसल गए तो वह अलग बात है। जैसे तालाब में तैरनेवाला इंसान, डूबने का प्रयत्न ही नहीं होता न उसका। प्रश्नकर्ता : अभी जो ब्रह्मचर्य से संबंधित निश्चय हो रहे हैं, वे किस आधार पर हो रहे हैं ? किस पर आधारित है ? स्ट्रोंग निश्चय ? दादाश्री : आपको जो करना है, उस पर । कोई लड़का अगर पानी में कूद जाए, खेलने या तैरने के लिए तो। वह किस आधार पर निश्चय करता है बचने का ?
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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