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________________ १२६ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) से हो सके तब तक, पहले तो यह उखाड़ देना चाहिए, तो चला फटाफट। खुद के खेत में यदि सारी कपास बोया है, कपास को पहचानते हैं कि यह कपास है, तब फिर अगर दूसरा कुछ उगे तो सिर्फ उसे निकाल देना है। उसे निराई कहते हैं। ऐसे निराई कर दें तो हो जाएगा। उगते ही सारा दबा दिया। तो हो गया। उससे पहले दबाया जा सके, ऐसा नहीं है। जब तक उगेगा नहीं तब तक बीज का पता नहीं चलेगा, उगते ही पहचान जाओगे कि यह बीज अलग है। प्रश्नकर्ता : लेकिन उसका निश्चय होगा तो दूसरा कुछ उगते ही उसे पता चल जाएगा न? दादाश्री : दूसरा बीज दिखे तो उसे उखाड़कर फेंक देना यानी संक्षेप में कहें तो यहीं सबसे अच्छा है। प्रश्नकर्ता : लेकिन इस एक सिद्धांत पर ही तो नहीं बैठे रह सकते हैं न, आगे बढ़ना तो पड़ेगा न। दादाश्री : उस घड़ी फिर से मिल आएगा रास्ता। उस घड़ी अपने आप सभी संयोग मिल जाएँगे। तुझे काम आएँगी, ये सारी बातें? तुझे क्या काम आएँगी? प्रश्नकर्ता : आएँगी ही न? अपने ध्येय का ही है न! 'उदय' की परिभाषा तो समझो प्रश्नकर्ता : व्रत का ठीक से पालन हो रहा है या नहीं, वह हम कैसे समझें? दादाश्री : ये तुम्हारी आँखों में चंचलता (विकारी भाव) आ जाती है या नहीं, उसका पता चलता है न? यदि कभी विषय के विचार तुम्हें अच्छे लगें तो? क्योंकि आत्मा थर्मामीटर जैसा है, तो तुरंत सबकुछ पता चल जाता है कि गलत रास्ते पर चला।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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