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________________ १०२ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) हमें ऐसा तो नहीं ही! निश्चय, वह पुरुषार्थ है! आपने जितने निश्चय किए थे न, यह रोज़ सत्संग में कैसे आ सकते हो? निश्चय किया है, 'जाना है', इसलिए जा पाते हो! उसके बगैर रूपक में आएगा नहीं न! ये तुम्हारे पहले के निश्चय ओपन हुए हैं। इस अनिश्चय की वजह से ही तो सभी दुःख हैं। ये भी चलेगा और वह भी चलेगा, तो उसे वैसा मिलेगा। यह तो हम बहुत सूक्ष्म बात कहना चाहते हैं। जितने निश्चय किए हैं, उतने फल मिलेंगे। देखो न, नौकरी के निश्चय किए, व्यापार के निश्चय किए, ऐसे रहना है, वैसे निश्चय किए, घर में नहीं रहना है, उसके निश्चय किए। वापस घर में रहना है, ऐसे निश्चय किए और उसी अनुसार फल मिले। यही देखना है, कि यह फिल्म कैसे चल रही है! हमने ऐसा निश्चय किया था कि 'सत्संग करना है, जगत् कल्याण के लिए प्रयत्न करना है।' वह आज हमारा बाईस साल से चल रहा है और यह तो अभी और भी रहनेवाला है! आज हमने जो तय किया, वही ठेठ तक रहे, उसे निश्चय कहते हैं! तो फिर उसकी लिंक आगे मिल जाती है वापस। यहाँ से अर्थी निकलने से पहले निश्चय बदल दे तो फिर आगे जाकर निश्चय कहाँ से मिलेगा? आगे जाकर उसे टाइम पर निश्चय मिलेगा ज़रूर, लेकिन वह सतत् नहीं, पीसेजवाला(टुकड़े-टुकड़े) मिलेगा। किसी बड़े ज्योतिष ने कहा हो कि कढ़ी ढुलनेवाली है, फिर भी हमें प्रयत्न करना चाहिए। क्योंकि अगर टाइमिंग बदल जाए तो उसका ज्योतिष झूठा पड़ जाएगा और दिन में टाइमिंग तो बदलते ही रहते हैं! ऐसे ऐसे संयोग खड़े होते हैं, उससे टाइमिंग बदल जाता है! अपनी भावना अत्यंत मज़बूत हो तो टाइमिंग भी बदल जाता है! आत्मा अनंत शक्तिवाला है! प्रश्नकर्ता : क्या निश्चय के सामने टाइमिंग बदल जाता है? दादाश्री : निश्चय के सामने सारे टाइमिंग बदल जाते हैं।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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