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________________ [३] दृढ़ निश्चय पहुँचाए पार जो कभी न डगमगाए, वही निश्चय एक भाई मुझसे कह रहे थे कि 'इच्छा ही नहीं है फिर भी विषय के विचार आते हैं, तो मैं क्या करूँ?' इसके अलावा और कुछ किया ही नहीं न! अनंत जन्म इसी का सेवन किया, उसे इसी के प्रतिस्पंदन आते रहते हैं! ज्ञानी मिलें तो उसे छुड़वा देंगे, नहीं तो कोई नहीं छुड़वा सकता। कैसे छुड़वाएगा? कौन छुड़वाएगा? जो छूटा हुआ हो, वही छुड़वा सकता है और विषय से छूट गए तो समझना मुक्त हो गए! सिर्फ इस विषय से छूट गए कि काम हो गया। जिसे छूटने की इच्छा है, उसे कभी न कभी साधन मिल जाता है। स्ट्रोंग इच्छावाले को जल्दी मिल जाता है और मंद इच्छावाले को देरी से मिलता है, लेकिन इच्छा यदि सच्ची है तो मिल ही जाता है। शादी की इच्छावाले की शादी हुए बिना रहती है? उसी तरह इसकी भी स्ट्रोंग इच्छा होनी चाहिए। निश्चय किसे कहते हैं? कि कैसा भी लश्कर आ जाए फिर भी उसकी सुने नहीं! अंदर कितने भी समझानेवाले मिलें फिर भी उनकी सुनें नहीं! निश्चय करने के बाद, फिर वह बदले नहीं, तो उसी को निश्चय कहते हैं। निश्चय ही करना है, और कुछ भी नहीं करना है। लोग भाव को तो समझते ही नहीं कि भाव किसे कहते हैं? भाव आने के बाद तो अभाव होता है, लेकिन यह तो निश्चय है कि
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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