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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) पालन नहीं किया जा सकता। वह तो मेरा यह वचनबल और मेरा यह मार्गदर्शन, इस वजह से पालन कर सकते हैं और इसका पालन किया कि राजा ! पूरी दुनिया का राजा ! ८२ : प्रश्नकर्ता क्योंकि लोग शादी करते वक्त बोलते हैं कि अब मैं गया लेकिन बेचारे के पास और कोई मार्ग नहीं है। दादाश्री : पाशवता अच्छी नहीं लगती, लेकिन फिर क्या करे ? वहाँ मजबूरी से पाशवतावाला है यह सब । विषय तो खुली पाशवता है। चारा ही नहीं है न? इतना जीत गए तो बस हो गया। इसलिए रोज़ मन में ऐसा तय करना कि, एक ही बार इसे जीतना है, और कुछ नहीं। और अभी जीता जा सकता है, ऐसा | दादाजी की निश्रा में सभी लोगों द्वारा जीता जा सकता है। कभी कसौटी का मौका आए तो, उसके लिए उपवास कर लेना दो-तीन । जब कर्म बहुत ज़ोर मारें न, तब उपवास करने से बंद हो जाएगा। उस तरह के उपवास करवाने से तो वह लकड़ी जैसा हो जाएगा। उपवास से वह मर नहीं जाएगा। प्रश्नकर्ता : यानी उपवास करने से वे सब फोर्स कम हो जाएँगे ? दादाश्री : सभी बंद हो जाएँगे। यह सारा आहार का ही फोर्स है। दूसरे गुनाह चलाए जा सकते हैं। ऐसा है कि सिर्फ यही एक गुनाह नहीं चलाया जा सकता। यह तो अनंत जन्मों का खत्म कर देता है। मिट्टी में मिला देता है। इतना जीत लिया तो बहुत हो गया । ब्रह्मचर्य का बल हो तो फिर वह विषय की गाँठ बंद हो जाएगी। अतः बल ऐसा रखना कि ये विचार आते ही धो देना, कुचल देना।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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