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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) तो क्या करना चाहते हैं ? विषय को उड़ा देना चाहते हैं और वे तो लालच के मारे याद करते हैं। दोनों के भावों में फर्क है। वह जो याद आता है, वह लालच से याद आता है और यह तो प्रतिक्रमण से याद आता है। प्रतिक्रमण करने के पीछे छोड़ने का भाव है, जबकि उसमें लालच का भाव है। दोनों के भाव में फर्क है। ८० 44 भव तेनो लव पछी रहे तत्व वचन ए भाई - श्रीमद् राजचंद्र 4 'लव पछी' यानी थोड़े ही जन्म बाकी रहते हैं फिर। जन्म कम हो जाते हैं। वह तत्व वचन है, तत्व का सार है। 44 ' सुंदर शियळ सुरतरु, मन-वाणी ने देह, जे नर-नारी सेवशे, अनुपम फल ले तेह "" 11 -श्रीमद् राजचंद्र ' शियळ' मतलब शीलवान । जो मन-वचन-काया से शीलवान रहे हैं, वह अनुपम फल प्राप्त करता है। प्रश्नकर्ता: शीलवान किसे कहते हैं ? दादाश्री : विषय का विचार तक नहीं आए। जिसे क्रोधमान-माया-लोभ नहीं हों, उसे शीलवान कहते हैं। सिर्फ यह स्त्री विषय ही नहीं, लेकिन जिसके क्रोध - मान - माया - लोभ भी खुद के वश हो चुके हों, तब वह शीलवान कहलाता है। जो क्रोध - मानमाया-लोभ खुद को दुःख दें, दूसरों को दुःख नहीं दें, वे 'कंट्रोलेबल' कहलाते हैं। तभी से भगवान ने उसे 'शील' कहा है। प्रश्नकर्ता : अतः मन-वचन-काया से किसी भी जीव मात्र को किचिंत्मात्र भी दुःख नहीं देना, वह जो भाव है, वह शीलवान ?
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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