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________________ किस समझ से विषय में... (खं-2-1) प्रश्नकर्ता : 'नववाड विशुद्ध' ब्रह्मचर्य की परिभाषा क्या दादाश्री : 'नववाड' यानी ऐसा है कि, मन-वचन-काया से ब्रह्मचर्य पालन करना। मन में जो सोचते हों, वैसा कुछ सोचना करना नहीं है। पहले के विषय याद आएँ तो उस घड़ी सबकुछ भुला देना है। वाणी से नहीं बोलना है, देह से बहुत दूर रहना नौ बाड़ बताई हैं न, कि जहाँ स्त्री बैठी हो, वहाँ पर हमें नहीं बैठना है, उसे देखना नहीं है। कोई विषय भोग रहा हो तो छुपकर दरार में से नहीं देखना है। देखने से भी मन बिगड़ जाता है। पहले संसार जो भोगा हो, उसे याद नहीं करना है। याद करने से वापस वे विचार आ जाएँगे, इस तरह ये सब नौ बाड़ है। जहाँ पर स्त्री बैठी हो उस जगह पर मत बैठना, ऐसा कहते हैं। फिर उस जगह पर क्या होगा? राग होगा या द्वेष? द्वेष होता रहेगा। बल्कि, राग-द्वेष के कारखाने बढ़ेंगे। इसलिए नौ बाड़ का हमें क्या करना है? उसके बजाय एक बाड़ कर दे, तो भी बहुत हो गया। नौ बाड़ करने जाते हुए तो दूसरे राग-द्वेष खड़े हो जाएँगे। इसके बजाय स्थूल ब्रह्मचर्य का पालन करो न और मन में जो विचार आएँ तो उनके प्रतिक्रमण करके धो देना। नौ बाड़ का पालन तो अभी किसी से भी नहीं हो सकता, एक-दो बाड़ तो टूट चुकी होती हैं। तब आप नौ बाड़ कैसे पूरी कर सकोगे? आप तो हमने जो बताया है, उसमें रहो। इतना कोई करे तो उसमें सभी नौ बाड़ आ जाएँगी। नौ बाड़ करने में अहंकार की ज़रूरत पड़ेगी लेकिन अपने यहाँ तो करने का मार्ग ही नहीं है। प्रश्नकर्ता : तो फिर प्रतिक्रमण करते वक्त हम जो याद करते हैं, तो उससे नया बंध नहीं पड़ता? दादाश्री : हाँ! याद आता है, लेकिन प्रतिक्रमण यानी हम
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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