SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) है और विषय खड़े हुए बिना रहता नहीं और इसलिए उसका प्रतिक्रमण किए बिना चलता नहीं । प्रतिक्रमण करेंगे तो हल आएगा, वर्ना जो आकर्षण हुआ था वह तो फिर चिपक ही जाएगा। बाहर आना-जाना पड़ता है, उसके बिना चलेगा नहीं, घर बैठे रहे तो दुनिया में चलेगा नहीं । 'व्यवस्थित' के हिसाब से जाना पड़ता है और वह चिपके बिना नहीं रहता । जागृति तो होती है, फिर भी पिछले जन्म के सारे मेल है न, इसलिए आकर्षण होता है और वापस से झंझट हुए बिना नहीं रहता। अतः अगर घर आकर प्रतिक्रमण करें तो वह उखड़ जाएगा । प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण ठीक से नहीं हो पाते। ६४ दादाश्री : प्रतिक्रमण करने का निश्चय करोगे तो होगा । प्रतिक्रमण तो अवश्य करने ही चाहिए । प्रतिक्रमण करने के बाद मन साफ हो जाता है। यह फिसलनवाला काल कहलाता है । सत्युग में से द्वापर, त्रेता ऐसे फिसलते फिसलते यह आखिरी काल आ रहा है। इसमें ब्रह्मचर्य का महत्व कम हो गया है, इसीलिए यह दशा हो गई है। ब्रह्मचर्य का यदि महत्व रहा होता तो यह दशा होती ही नहीं ! संसारी स्थान में हर्ज नहीं, लेकिन लोगों ने ब्रह्मचर्य का महत्व ही उड़ा दिया। इससे फिर खुद की सारी जागृति मंद हो जाती है। हमने यह ज्ञान दिया है, फिर भी कितनों को जैसी होनी चाहिए वैसी जागृति रह नहीं पाती। वर्ना हमारा ज्ञान मिलने के बाद तो कैसी जागृति रहती है? भगवान जैसी जागृति रहती है। तुझे बहुत जागृति रहती है या मंद हो जाती है ? प्रश्नकर्ता : लिमिट का कुछ पता नहीं चलता । दादाश्री : जागृति ज़्यादा हो तो ठोकर नहीं लगेगी? गलती होती है तुझसे ? गलती हो जाने के बाद पता चलता है न ? प्रश्नकर्ता: हाँ, बाद में पता चलता है ।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy