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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) दादाश्री : जिसका निश्चय होता है, उसे कुछ भी नहीं छूता। वह कुछ भी करे या उसे कैसे भी विचार आएँ, फिर भी उसे स्पर्श नहीं करता। वर्ना कम विषयवाले को भी ‘विषय' उदय में आ जाता है। इसलिए निश्चय होना चाहिए! जिसका निश्चय नहीं डगमगाता, उसे कुछ नहीं होता, जिसका निश्चय डगमगा जाए उसमें सभी भूत घुस जाते हैं, सभी रोग घुस जाते हैं। प्रश्नकर्ता : यदि निश्चय मज़बूत हो और तब विचार आएँ तो उसमें हर्ज नहीं है? दादाश्री : नहीं, वह विचार आ नहीं पाएगा, उसे। क्योंकि आत्मज्ञान प्राप्त हुआ है इसलिए उस से निश्चय हो सकता है, वर्ना निश्चय हो ही नहीं सकता। हे विषय! अब तेरे पक्ष में नहीं प्रश्नकर्ता : इन विचारों को दबा दूं, ऐसा करता हूँ फिर भी विचार आते हैं। दादाश्री : मेरा कहना है कि विचार आते हैं, उसमें हर्ज नहीं है, लेकिन जो विचार आते हैं, उन्हें देखते रहो लेकिन तुम उनके अमल में एकाकार मत होना। जो विचार आते हैं, उनके अमल में आप हस्ताक्षर मत कर देना। वे कहेंगे 'हस्ताक्षर करो' तो आप कहना, 'नहीं, अब हस्ताक्षर नहीं होंगे। बहुत दिनों तक हमने हस्ताक्षर किए, अब नहीं करेंगे।' हम ऐसा कहते हैं कि तू ऐसा तय कर कि इसमें तन्मयाकार होना ही नहीं है। जुदा रहकर देखता रह, तो एक दिन तू छूट जाएगा। प्रश्नकर्ता : विषय के विचार आएँ तो भी देखते रहना है? दादाश्री : देखते ही रहना है। तब क्या उन्हें संभालकर रखना प्रश्नकर्ता : हटा नहीं देना है?
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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