SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) अधीन रहकर ब्रह्मचर्य पालन किया जा सकता है। वर्ना जो खुद पालन नहीं करते हों, खुद के अंदर गुप्त 'डिफेक्ट' हो तो खुद को ही पालन करना मुश्किल हो जाता है। इसलिए पूरे हिन्दुस्तान में कहीं भी ब्रह्मचर्य से संबंधित बातें कोई करता ही नहीं है न? मैं जिसमें 'हन्ड्रेड परसेन्ट' करेक्ट होऊँगा, उसी का आपको उपदेश दे सकता हूँ। तभी मेरा वचनबल फलदायी होगा। खुद में ज़रा सा भी 'डिफेक्ट' हो तो औरों को कैसे उपदेश दिया जा सकता है? विषय की जोखिमदारी बहुत बड़ी है। सबसे बड़ी जोखिमदारी हो तो वह विषय की है। उससे पाँचों महाव्रत और अणुव्रत टूट जाते हैं। प्रश्नकर्ता : ज्ञानीपुरुष के वाक्य किस प्रकार से विषय का विरेचन करवाते हैं? दादाश्री : हर दिन विषय बंद होता जाता है। वर्ना लाख जन्मों तक किताबें पढ़े, फिर भी कुछ नहीं होता। प्रश्नकर्ता : उनका वाक्य इतना असरकारक क्यों होता है? दादाश्री : उनका वाक्य बहुत ज़बरदस्त होता है, जोरदार होता है! 'जुलाब करवा दें ऐसे शब्द' कहा गया है। तभी से नहीं समझ जाना चाहिए कि उनके शब्दों में कितना बल है! प्रश्नकर्ता : वह वचनबल ज्ञानी को कैसे प्राप्त हुआ? दादाश्री : खुद निर्विषयी हो, तभी वचनबल प्राप्त होता है। वर्ना जो विषय का विरेचन करवा दे, ऐसा वचनबल कहीं होता ही नहीं न! जब मन-वचन-काया से संपूर्ण रूप से निर्विषयी हो, तब उनके शब्दों से विषय का विरेचन होता है। 'ज्ञानीपुरुष' के वाक्य विषय का विरेचन करवानेवाले होते हैं। जो विषय का विरेचन नहीं करवाए, वह 'ज्ञानीपुरुष' है ही नहीं।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy