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________________ माहात्म्य ब्रह्मचर्य का (खं-1-3) वह किस काम का? अपना अस्तित्व(अस्तित्वपना) एक ही जगह पर रहना चाहिए, दो जगह पर नहीं रहना चाहिए। अतः जब तक हो सके तब तक सिद्धांत का पालन करना। आजकल चारित्र की कीमत ही खत्म हो गई है। ब्रह्मचर्य की तो कीमत ही खत्म हो गई है न? स्वच्छ जीवन जीने की कीमत ही खत्म हो गई है! पवित्र जीवन ही जीना है। अभिप्राय बदलते ही निकलना शुरू प्रश्नकर्ता : लेकिन मानसशास्त्री कहते हैं कि विषय बंद हो ही नहीं सकता, अंत तक रहता है। तो फिर वीर्य का ऊर्ध्वगमन होगा ही नहीं न? दादाश्री : मैं क्या कहता हूँ कि विषय के प्रति अभिप्राय बदल जाए तो फिर विषय रहेगा ही नहीं! जब तक अभिप्राय नहीं बदलेगा, तब तक वीर्य का ऊर्ध्वगमन होगा ही नहीं। अपने यहाँ तो सीधा आत्मा में ही डाल देना है, वही ऊर्ध्वगमन है! विषय बंद करने से उसे आत्मा का सुख बर्तता है और विषय बंद हो जाए तो वीर्य का ऊर्ध्वगमन होता ही है। हमारी आज्ञा ही ऐसी है कि विषय बंद हो जाता है। प्रश्नकर्ता : आज्ञा में क्या होता है? स्थूल बंद करना? दादाश्री : स्थूल के लिए हम कुछ कहते ही नहीं। मनबुद्धि-चित्त और अहंकार ब्रह्मचर्य में रहें, ऐसा होना चाहिए व यदि मनबुद्धि-चित्त और अहंकार ब्रह्मचर्य के पक्ष में आ गए तो स्थूल(ब्रह्मचर्य) तो अपने आप आ ही जाएगा। तेरे मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार को पलट। हमारी आज्ञा ऐसी है कि ये चारों पलट ही जाते हैं। ग़ज़ब के वे ब्रह्मचारी ___ 'यह' 'पब्लिक ट्रस्ट' ऐसा है कि संपूर्ण रूप से निरोगी है। वर्ल्ड का टॉपमोस्ट है यह! आपको जो भी रोग निकालने हों, वे निकाले जा सकते हैं! जो सुंदर ब्रह्मचर्य पालन करते हैं, उनके
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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