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________________ और 'माइ इगोइज़म' बोलते हैं या 'आइ एम इगोइज़म' बोलते हैं?' प्रश्नकर्ता : ‘माइ इगोइज़म'। दादाश्री : ‘माइ इगोइज़म' कहेंगे तो उसे अलग कर सकेंगे। लेकिन उसके आगे जो है, उसमें आपका हिस्सा क्या है, यह आप नहीं जानते। इसलिए फिर पूर्ण रूप से सेपरेशन नहीं हो पाता। आप, अपना कुछ हद तक ही जान पाएँगे। आप स्थूल वस्तु ही जानते हैं, सूक्ष्म की पहचान ही नहीं हैं। सूक्ष्म को अलग करना, फिर सूक्ष्मतर को अलग करना, फिर सूक्ष्मतम को अलग करना तो ज्ञानीपुरुष का ही काम है। लेकिन एक-एक करके सारे स्पेयरपार्ट्स अलग करते जाएँ तो I' और माइ, दोनों अलग हो सकते हैं न? I' और 'My' दोनों अलग करतेकरते आखिर क्या बचेगा? My' को एक ओर रखें तो आखिर क्या बचा? प्रश्रकर्ता : 'I'। दादाश्री : वह 'I' ही आप हैं! बस, उसी 'I' को रीयलाइज़ करना है। वहाँ हमारी ज़रूरत पड़ेगी। मैं आपमें वह सभी अलग कर दूंगा। फिर आपको 'मैं शुद्धात्मा हूँ' ऐसा अनुभव रहेगा। अनुभव होना चाहिए और साथसाथ दिव्यचक्षु भी देता हूँ ताकि आत्मवत् सर्वभूतेषु दिखे (सभी में आत्मा)। ४. 'मैं' की पहचान कैसे? जप-तप, व्रत और नियम प्रश्नकर्ता : व्रत, तप, नियम ज़रूरी हैं या नहीं? दादाश्री : ऐसा है, कि केमिस्ट के यहाँ जितनी दवाइयाँ हैं वे सभी ज़रूरी हैं, लेकिन वह लोगों के लिए ज़रूरी हैं, आपको तो जो दवाइयाँ ज़रूरी हैं उतनी ही बोतल आपको ले जानी हैं। वैसे ही व्रत, तप, नियम, इन सभी की ज़रूरत है। इस जगत् में कुछ भी गलत नहीं है। जप, तप
SR No.030102
Book TitleAatmsakshatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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