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________________ अनुभव लक्ष्य और प्रतीति। प्रतीति मुख्य है, वह आधार है। वह आधार बनने के बाद लक्ष्य उत्पन्न होता है। उसके बाद 'मैं शुद्धात्मा हूँ' वह निरंतर लक्ष्य में रहता ही है और जब आराम से बैठे हों और ज्ञातादृष्टा रहें तब वह अनुभव में आता है। १३. प्रत्यक्ष सत्संग का महत्व उलझन के समाधान के लिए सत्संग की आवश्यकता इस 'अक्रम विज्ञान' के माध्यम से आपको भी आत्मानुभव ही प्राप्त हुआ है। लेकिन वह आपको आसानी से प्राप्त हो गया है, इसलिए आपको खुद को लाभ होता है, प्रगति की जा सकती है। विशेष रूप से 'ज्ञानी' के परिचय में रहकर समझ लेना है। यह ज्ञान बारीक़ी से समझना पड़ेगा। क्योंकि यह ज्ञान घंटेभर में दिया गया है। कितना बड़ा ज्ञान! जो एक करोड़ साल में नहीं हो सके वही ज्ञान घंटेभर में हो जाता है। मगर बेसिक (बुनियादी) होता है। फिर विस्तार से समझ लेना पड़ेगा न? उसे ब्योरेवार समझने के लिए तो आप मेरे पास बैठकर पूछोगे तब मैं आपको समझाऊँ। इसलिए हम कहा करते हैं न कि सत्संग की बहुत आवश्यकता है। आप ज्यों-ज्यों यहाँ गुत्थी पूछते जाएँ, त्यों-त्यों वे गुत्थी अंदर खुलती जाती है। वे तो जिसे चुभे, उसे पूछ लेना चाहिए। बीज बोने के बाद में पानी छिड़कना ज़रूरी प्रश्नकर्ता : ज्ञान लेने के बाद भी 'मैं शुद्धात्मा हूँ' ऐसा ध्यान में लाना पड़ता है, वह कुछ कठिन है। दादाश्री : नहीं, ऐसा होना चाहिए। रखना नहीं पड़ेगा अपने आप ही रहेगा। तो उसके लिए क्या करना पड़ेगा? उसके लिए मेरे पास आते रहना पड़ेगा। जो पानी छिड़का जाना चाहिए वह छिड़का नहीं जाता इसलिए इन सब में मुश्किल आती है। आप व्यापार पर ध्यान नहीं दो तो व्यापार का क्या होगा? २५
SR No.030102
Book TitleAatmsakshatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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