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________________ आप्तवाणी श्रेणी -१३ (पूर्वार्ध) [ ११ ] प्रकृति किस तरह बनती है ? प्रकृति का सूक्ष्म साइन्स प्रश्नकर्ता: दादा, प्रकृति क्या होती है ? I दादाश्री : प्रकृति अर्थात् आरोपण करके जो पुतला बनाया हुआ है वह। ‘मैं चंदूभाई हूँ, चंदूभाई हूँ' (चंदूभाई की जगह वाचक को खुद का नाम समझना है), करता है और फिर ऐसा कहता है कि 'मैंने किया'। उसी को मूर्ति में प्रतिष्ठा करना कहते हैं । यह जो देहरूपी मूर्ति है उसमें प्रतिष्ठा की। इससे प्रतिष्ठित आत्मा खड़ा हो जाता है और फिर वह अगले जन्म में फल देता है। जैसे यह मूर्ति प्रतिष्ठा करने से फल देती है न, उसी तरह यह भी एक्ज़ेक्ट फल देती है । क्योंकि एक्ज़ेक्ट मूर्ति है यह तो । उसके बाद अपने बस में नहीं रहती । उसके बाद वह फल देने लगती है । वही प्रकृति है। अतः वह अपनी खुद की ही कृति है, जो अज्ञानता से खड़ी हो गई है, आत्मा से नहीं हुई है। दो चीज़ों के मिलने से बनी थी, विशेष भाव से ! I I प्रश्नकर्ता : मतलब जड़ के साथ चेतन के मिलने से यह प्रकृति उत्पन्न हो गई? दादाश्री : हाँ, चेतन और जड़ के परमाणु, दोनों इकट्ठे हुए तो उससे यह खड़ा हो गया। अहंकार, क्रोध - मान-माया-लोभ खड़े हो जाते
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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