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________________ ४४६ [५] आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व शरीर स्वभाव से इफेक्टिव साहजिक अर्थात् बिना मेहनत.. ४४८ जहाँ सहजता वहाँ खत्म कार्य.. सहज समाधि ४४८ 'करो,' वहाँ आत्मज्ञान नहीं है दखलंदाजी बंद वही साहजिकता ४२३ डखोडखल निकालने के लिए.. ४२३ मूल आत्मा और प्रकृति सहज.. ४२४ अहंकार से रुकी है पूर्णाहुति शक्तियाँ माँगने से जागृति.. वापस ले लेनी हैं डखोडखल भरा हुआ माल तो निकलेगा.. तब लगती है मुहर मोक्ष की देखने से जाते हैं अंतराय जहाँ नहीं हैं रागदखल को निकालना या... दखल निकाले दखल को ज्ञाता-दृष्टा रहे तो डखोडखल.. इसमें 'हम' कौन है? एकता मानी अहंकार ने तब वह कहलाती है समझ - द्वेष, वहाँ.... शुद्ध व्यवहार कब ? दखल नहीं, तो वह सहज पुद्गल नाचे और आत्मा देखे पहले देखो फिर जानो देखने से होती है शुद्धि पढ़ता रह खुद की ही किताब सम्यक्त्व के बाद मात्र गलन.. ४२७ ४२९ ४३१ ४३२ ४३३ प्रयत्न से जाए दूर, सहजता सहजता का मतलब ही है..... ज्ञानी सदा अप्रयत्न दशा में दादा की अनोखी साहजिकता व्यवस्थित समझने से प्रकट.. प्रकटे आत्म ऐश्वर्य... ४४० क्रिया से नहीं बल्कि उसमें... ४४१ जल्दी है ? तो बन अपरिग्रही सहज किस तरह से रहें? ४४२ ४४३ ४४४ ज्ञायकभाव : मिश्रभाव ज्ञाता-दृष्टा, बुद्धि से या आत्मा पुद्गल को देखनेवाली, प्रज्ञा जो दिखाए, वह प्रज्ञा है ४३४ ४३६ ४३८ ४४४ ४४५ [ ६ ] एक पुद्गल को देखना ४७५ ४७६ अच्छा-बुरा, दोनों ही पुद्गल एक पुद्गल का मतलब क्या ? अंत में यही एक ध्येय अनंत- ज्ञेयों को देखा एक... महावीर का है यह तरीका और उसे भी जाननेवाला देखनेवाले को भी देखनेवाला बीचवाला उपयोग किसका ? ४७८ ४८० ४८२ [७] देखनेवाला - जाननेवाला ४९३ ४९६ ५०० ५०१ ४६५ अप्रयास रूप से विचरे, वह.... ४६७ सहज दशा तक पहुँचने की ... सहज को देखने से हुआ.. ४७० ४७३ 91 ४५० ४५० ४५१ ४५२ ४५५ ४५७ ४५८ ४६० ४६२ ४६३ ४८४ ४८५ ४८८ ४९० ४९१ ५०२ ५०६ पूर्णता प्राप्त करने के लिए... ५०७ आत्मा अर्थात् केवलज्ञान प्रकाश ५१०
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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