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________________ कर्म में से ये व्यतिरेक गुण (क्रोध - मान-माया - लोभ), ये भावकर्म उत्पन्न हुए है। रोंग बिलीफ से पावर भर गया है | चेतन का पावर जड़ में बिलीफ के रूप में आ गया है। उस पावर की वजह से ही दुःख हैं । वह पावर खर्च हो जाएगा तो दुःख चले जाएँगे। व्यतिरेक गुण से पावर खड़ा हो गया है। इसी को व्यवहार आत्मा कहा है। मूल तत्व खुद के गुण या स्वभाव को छोड़ते ही नहीं। उल्टा दिखे कि ‘मैं चंदू हूँ’ तो वह भावकर्म और सीधा दिखे कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ' तो स्वभाव भाव कहलाता है । 'मैं कर रहा हूँ', वह भी भावकर्म है। छः मूल ओरिजिनल द्रव्य कर्म किस प्रकार से बना? समसरण मार्ग में द्रव्यों के मिलने पर पट्टियाँ बंध जाती हैं । आठ प्रकार के द्रव्य कर्म बनते हैं। उनमें से चार पट्टियाँ आँखों पर (आवरणों का चश्मा) हैं और बाकी के चार देह से भोगने होते हैं । परम पूज्य दादाश्री ने बस इतने में ही सब से गुह्यतम ज्ञान, मूल ज्ञान अनावृत कर दिया है। कर्म का मूल कहाँ से है, वह यहीं पर स्पष्ट समझ में आ सकता है। स्वरूप का ज्ञान मिलने से भ्राँति जाती है, आवरण हटते हैं इसलिए पट्टियाँ निकल जाती हैं । भावकर्म का कर्ता कौन है? अहंकार। अहंकार में से क्रोध-मान-माया-लोभ उत्पन्न होते हैं । अहंकार कहाँ से उत्पन्न होता है? ये जो छः द्रव्य मिलते हैं, उनमें से जड़ और चेतन के मिलने पर विशेष परिणाम उत्पन्न होते हैं । उस विशेष परिणाम से अहम् उत्पन्न होता है। खुद चेतन है फिर भी अन्य को, जड़ को, 'मैं' मानता है, उससे रोंग प्लेस में जो आरोपित भाव खड़ा हो जाता है, वही अहंकार कहलाता है। करते हैं संयोग और खुद मानता है कि 'मैंने किया', तो अन्य जगह पर 'मैं' के अस्तित्व के रोंग बिलीफ से रोंग बिलीफ एक स्टेप आगे बढ़ती है और कर्तापद में अन्य के स्थान पर खुद को कर्ता मानता है। इससे अहम् में से बन जाता है अहंकार, कर्तापन में आया, इस वजह से अहम् में से अहंकार बना । ज्ञान मिलने के बाद उसे यह राइट बिलीफ बैठ जाती है कि जड़ और चेतन अलग हैं, तब फिर इसका अंत आ जाता है। आत्मा कर्म का प्रेरक नहीं है । वह कर्म ग्रहण करता ही नहीं है । यह 54
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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