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________________ होती है। अक्रम में ज्ञानलब्धि होती है, उसके बाद अघाती कर्म एकाध जन्म में खत्म हो जाते हैं। जब अघाती कर्म खत्म हो जाते हैं तब आत्यंतिक मोक्ष होता है। इस प्रकार दादाश्री ने आठ प्रकार के द्रव्य कर्मों का सर्वोत्तम प्रकार का तात्विक विवरण दिया है, जो कि और कहीं भी नहीं मिलता। __ [२.११] भावकर्म भावकर्म का अर्थ क्या है? संक्षेप में, 'मैं चंदूभाई हूँ' वही भावकर्म है। द्रव्य कर्म के चश्मों की वजह से उसे यह भाव होता है कि यह अच्छा है और यह खराब है। भाव की वजह से चश्मे नहीं हैं, चश्मों की वजह से भाव होते हैं! भाव और अभाव से कर्म बंधन होता है। क्रोध-मान अर्थात् अभाव और माया-लोभ अर्थात् भाव। अगर अहंकार हो तो भाव-अभाव हैं और अगर अहंकार नहीं हो तो लाइक-डिसलाइक। 'मैं' और 'मेरा', वे क्रमशः क्रोध-मान और मायालोभ हुए। क्रोध-मान-माया-लोभ भावकर्म हैं। मान-अपमान भी भावकर्म हैं। कपट, मोह, लोभ वगैरह सभी भावकर्म हैं। लोभ अर्थात् अगले जन्म में जो मिलनेवाला था, उसे आज ही भुना लिया। क्रोध-मान-माया-लोभ ही भावकर्म हैं। वे यदि हिंसक हों तो भावकर्म है और न हो तो भावकर्म नहीं कहलाता। चार कषायों में से एक ही हो, ऐसा नहीं होता। एकाध उनमें से सरदार बन बैठता है और उसके साथ दूसरे भी होते हैं। आर्तध्यान, रौद्रध्यान और धर्मध्यान, ये सभी भावकर्म हैं। भाव और भावकर्म में क्या फर्क है? 'मुझे यह भाता है, मुझे यह भाता है,' ऐसा जो सब होता है, वह सब इफेक्ट है और भावकर्म कॉज़ है और भावना भावकर्म का फल है। 52
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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