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________________ धागा, जो जल जाता है । दूसरा है धागे को जलानेवाला मोम, तीसरा जो खुद जलकर खत्म हो जाता है, वह आयुष्य कर्म है और चौथा है प्रकाश । इस प्रकार चार हुए। मोमबत्ती में घातीकर्म नहीं होते और अपने में चार घातीकर्म भी होते हैं। इस प्रकार मनुष्य में आठ कर्म होते हैं । ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अंतराय । ये आत्मा का घात करनेवाले कर्म हैं, इसलिए इन्हें घातीकर्म कहा है। 1 द्रव्य कर्म निरंतर एक्ज़ोस्ट होते ही रहते हैं और एक दिन खत्म हो जाते हैं। ये चार घातीकर्म चश्मे हैं और जो अघाती कर्म हैं, वह देह का भोगवटा है। अक्रम विज्ञान से घातीकर्म का मुख्य मोहनीय और दर्शनावरण संपूर्ण खत्म हो जाता है। कुछ अंशों तक ज्ञानावरण और अंतराय भी खत्म हो जाते हैं, मात्र दो ही घंटों में । अब अघाती कर्म जो कि देह के हैं, उन्हें भोगना बाकी रहता है । उसमें से जो उत्पन्न होता है वह नोकर्म है, जिन्हें भुगतना ही पड़ता है। घातीकर्म खत्म हो जाने के बाद सिर्फ अघाती कर्मों का निकाल ही करना बाकी रहता है ! तीर्थंकरों को जब केवलज्ञान होता है, तब घातीकर्म संपूर्ण रूप से नष्ट हो जाते हैं। उनके अघाती कर्म बहुत उच्च प्रकार के होते हैं। शुक्लध्यान से घातीकर्म नष्ट हो जाते हैं। दादाश्री जब ज्ञान देते हैं, तब शुक्लध्यान उत्पन्न होता है । आठों कर्मों में मुख्य मोहनीय कर्म है। उससे दर्शनावरण कर्म का बंधन होता है। दर्शनावरण अर्थात् रोंग बिलीफ और फिर ज्ञानावरण उत्पन्न होता है। मोहनीय अर्थात् आत्मा को आत्मा के रूप में न देखकर अन्य प्रकार से देखना। इसलिए सब उल्टा ही दिखाई देता है । कषाय मोहनीय के बच्चे हैं। ‘मैं कौन हूँ' जब यह समझ में आ जाए तो कषाय फिर दूर होने लगते हैं। जब मोहनीय, दर्शनावरण और ज्ञानावरण हट जाएँ, तब ज्ञानलब्धि 51
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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