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________________ आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व दखलंदाजी बंद वही साहजिकता प्रश्नकर्ता : आपके मत में साहजिक का मतलब क्या है? दादाश्री : साहजिक अर्थात् मन-वचन-काया की जो क्रियाएँ हो रही हैं, उनमें दखलंदाजी न करना। उसे साहजिक कहते हैं। संक्षेप में मैंने एक ही वाक्य में यह बात की है। कितना समझ में आता है इसमें? नहीं समझ में आए तो आगे दूसरा वाक्य बोलूँ? मन-वचन-काया की जो क्रियाएँ हो रही हैं, उनमें दखलंदाजी की अर्थात् साहजिकता टूट गई। दखलंदाजी नहीं करना, वह साहजिकता है। 'मैं चंदूभाई हूँ' ऐसा भान टूट जाता है, तब सहज हो जाता है। प्रश्नकर्ता : अब जो आत्मा के भान में आ गया, फिर उसका जो व्यवहार है वह सारा सहज व्यवहार होता है? दादाश्री : खुद के भान में आ गया तो फिर व्यवहार से कोई लेनादेना रहा ही नहीं न! व्यवहार चलता रहेगा। प्रश्नकर्ता : अर्थात् उसका व्यवहार उदय रूप होता है? दादाश्री : बस, और कुछ है ही नहीं। कर्तापन छूट जाए, उसके बाद वह आत्मा के भान में आता है। जब कर्तापना छूट जाए तो फिर उदय स्वरूप रहा। डखोडखल निकालने के लिए दादा की डखोडखल संसार का अर्थ क्या है (व्यवहार) आत्मा डखोडखल
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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