SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 486
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [४] ज्ञाता-दृष्टा, ज्ञायक ३९३ प्रश्नकर्ता : वह जो बात थी न कि देखने से बुद्धि या अंत:करण जो कुछ भी होता है, वह सेर में से पाव सेर हो जाता है, यदि ज्ञाता-दृष्टा रहे तो। लेकिन अगर उसकी संभाल करे (रक्षण करे) तो सेर में से पाँच सेर भी हो सकता है। तो इसका अर्थ ऐसा हुआ कि अगर डिस्चार्ज में अपना सेर हो और अगर हम उसे संभालकर रखें तो वह बढ़ जाएगा न? तो चार्ज-डिस्चार्ज का प्रिन्सिपल में बदलाव हो गया? दादाश्री : वह बढ़ता नहीं है। प्रश्नकर्ता : तो फिर क्या होता है? दादाश्री : बोझ लगता है। बढ़ जाता है, उसे आपकी भाषा में समझ जाते हो आप। उसका बोझ लगता है जबकि देखने से हल्का हो जाता है, बस। बढ़ता-वढ़ता कुछ भी नहीं है डिस्चार्ज अर्थात् जो जाने के लिए आया है। बोझ बढ़ेगा तो भी वह जाएगा और हल्का हो जाएगा तो भी जाएगा। बहुत बोझ रहे तो बाकी रह जाता है देखे बगैर। फिर वह थोड़ा बहुत रह जाएगा। बाद में उसका निबेड़ा लाना पड़ेगा। डिस्चार्ज अर्थात् जो जाने के लिए आया है। मैले कपड़े धोने के लिए आएँ तो उनमें से अगर कुछ धोए बगैर रह जाएँ तो वे फिर से धोने पड़ेंगे। बस इतना ही है यह सब। और फिर हम कपड़े धोने के बाद वापस कपड़े धोने जाते हैं। यह मैला रह गया, यह साफ हो गया। ऐसा सब करने जाएँ तो ज्यादा रह जाता है। जो धुल जाते हैं, वे बिल्कुल कम्पलीट ही हैं। प्रश्नकर्ता : जो धुल गए, वे धुल गए! दादाश्री : जो धोये बगैर रह गए, उतने धोने बाकी बचे। देखने पर अभी तक में एक भी कर्म नहीं बंधेगा। वर्ना और कहीं तो एक सौ पंद्रह लोगों की यात्रा में कितना झंझट हो जाता है ! इन लोगों का रिवाज़ ऐसा है, इसका ऐसा है और इसका यह खराब है, उसका वह खराब है ! एक व्यक्ति कहे, 'नहीं, अच्छा है' और एक कहता है, 'खराब है।' अंदर-अंदर झिकझिक, सीधे ही नहीं रहते न! और अपने यहाँ यात्रा में एक सौ पंद्रह लोग थे, फिर भी कोई झिकझिक नहीं हुई। तीन हज़ार लोग होंगे तब भी
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy