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________________ [४] ज्ञाता-दृष्टा, ज्ञायक ३९१ दादाश्री : अपने आप ही हो रहा है। प्रश्नकर्ता : जबकि ये लोग क्या कहते हैं कि उसे करना पड़ता है । दादाश्री : करना कुछ भी नहीं है । करनेवाला कौन है फिर वापस? वह तो अपने आप ही होता जा रहा है। इसमें मुख्य चीज़ तो जो दृष्टि दी है, वह है, जो ज्ञान देते हैं, उसकी ज़रूरत है । वह मुख्य चीज़ है। अज्ञान प्रदान हुआ है, इसलिए उसे ज्ञान की ज़रूरत पड़ती है। महात्माओं का डिस्चार्ज अनोखा प्रश्नकर्ता : मनुष्य मन- न-बुद्धि- चित्त, अहंकार, वाणी-काया वगैरह की सभी बैटेरियाँ पिछले जन्म से चार्ज करके लाए होते हैं । अभी उनका डिस्चार्ज ही हो रहा है, राइट? अब जो बुद्धि लेकर आया है वह उसी अनुसार चलेगी। क्या उसमें कोई बदलाव किया जा सकता है? यह ज्ञान मिलने के बाद उसमें कोई फर्क आता है? दादाश्री : देखने से बदलाव आ ही जाता है, संकुचित हो जाती है। चीज़ वही की वही रहती है, लेकिन संकुचित हो जाती है। देखने से सब बदल जाता है। वह एक रतल भी रतल नहीं रहता । लेकिन अगर देखे नहीं और ऊपर से कर्ता बने तो पाँच रतल हो जाता है। प्रश्नकर्ता: देखने से बुद्धि, अगर एक रतल की हो तो संकुचित होकर कम हो जाती है । और यदि उसे प्रज्वलित किया (हवा दी) जाए तो पाँच रतल हो जाती है। I अर्थात् इसका अर्थ यह हुआ न कि जितना चार्ज हो चुका है, उसका उतना ही डिस्चार्ज होगा, ऐसा कुछ नहीं है । इसमें तो बदलाव होता है और कम होता है या बढ़ भी सकता है । चार्ज के अनुसार ही डिस्चार्ज होता है, ऐसा नहीं रहा न? तो क्या ऐसा होता है कि संकुचित होने पर कम हो जाता है? दादाश्री : कम हो जाता है सबकुछ | खत्म हो जाता है सब । बहुत सारा बरफ रखा हुआ हो फिर भी खत्म हो जाता है । खत्म नहीं हुआ होता
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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