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________________ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) दादाश्री : हाँ, तब ऐसा लगता है जैसे घोटाला हो गया लेकिन ऐसा कुछ होता नहीं है। ३७२ एक्ज़ेक्ट समझ ज्ञाता - दृष्टा की प्रश्नकर्ता : ज्ञाता-दृष्टा की बात मुझे एक्ज़ेक्ट समझाइए। ज्ञाता अर्थात् मन-बुद्धि के आधार पर और दृष्टा, वह आँख के आधार पर है या फिर चित्त के आधार पर है ? आँख बंद हो तब दृष्टा कैसे रहा जा सकता है? दादाश्री : मन में जो विचार आते हैं न, वे सूक्ष्म संयोग हैं। उन्हें देखना है। प्रश्नकर्ता : उन्हें किस से देखना है? मन से या बुद्धि से? दादाश्री : आप जब उसे देखोगे न तब वहाँ मन-बुद्धि नहीं होंगे, वहाँ पर आँखें भी नहीं होंगी। प्रश्नकर्ता : यही उलझन है। पता ही नहीं चलता । दादाश्री : ये मन- - बुद्धि से देखते हैं न, वह ज्ञाता-दृष्टापना नहीं कहलाता। आप जब अंदर सूक्ष्म संयोगों को देखते हो, मन के संयोगों को, तो वह ज्ञातापन है। यह ज्ञातापन मन-बुद्धि के आधार पर नहीं है, दृष्टा आँख के आधार पर नहीं है, चित्त के आधार पर भी नहीं है । यह प्रज्ञाशक्ति के आधार पर है। प्रश्नकर्ता : आँखें बंद रहें, तब भी क्या दृष्टापन रहता है ? दादाश्री : आँखें बंद हों या खुली हों, तब भी रहता है। अर्थात् यह सब जो आँखों से दिखाई देता है न, वह ज्ञाता - दृष्टापन नहीं कहलाता । बुद्धि से जो समझ में आता है, वह ज्ञाता - दृष्टापन नहीं कहलाता। अंदर प्रज्ञा से मन की स्थिति को देखता है, मन क्या-क्या सोच रहा है वह सब देखता है। प्रश्नकर्ता : हर एक को ज्ञाता - दृष्टापना प्राप्त हो सकता है ?
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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